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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र आदिक से यथोचित उपचार करने लगीं। ऐसे सैकड़ों उपचारों से भी उसने मौन न त्यागा; क्योंकि बीमारी और हो और दवा और हो, तो आराम नहीं होता। काम पड़ने से, वह अपने कुटुम्बियों को अक्षर लिख कर अथवा भौं और हाथों के इशारेसे अपने मन का भाव जताती थी। एक दिन श्रीमती अपने क्रीड़ा-उद्यान में गई। उस समय एकान्त जानकर उस की पण्डिता नाम्नी धाय ने उस से कहा-"राजपुत्री ! जिस हेतु से तैने मौन धारण किया है, वह हेतु मुझ से कह और दुःख में मुझे भागीदारन बनाकर अपना दुःख हल्का कर। तेरे दुःख को जानकर मैं उस के दूर करने का उपाय करूँगी ; क्योंकि रोग जाने बिना रोग की चिकित्सा हो नहीं सकती।' इसके बाद जिस तरह प्रायश्चित्त करनेवाला मनुष्य सद्गुरु के सामने अपना यथार्थ वृत्तान्त निवेदन कर देता है ; उसी तरह श्रीमती ने अपने पूर्वजन्म का यथार्थ वृत्तान्त पण्डिता को कह सुनाया। तब उस सारे वृत्तान्त को एक पट्टी पर लिख कर, उपाय करने में चतुर पण्डिता उस पट्टी को लेकर बाहर चली। उसी समय घजसेन चक्रवर्ती की वर्ष-गाँठ होने के कारण, उस के उत्सव में शामिल होने के लिये, अनेक राजा और राजकुमार आने लगे। उस समय श्रीमती के बड़े भारी मनोरथ की तरह लिखे हुए उस पट को अच्छी तरह फैलाकर पण्डिता राजमार्ग में खड़ी हो गई। कितने ही आगम-शास्त्र जानने वाले शास्त्र के अर्थ-प्रमाण से लिखे हुए नन्दीश्वर द्वीप प्रभृति को देखकर उसकी स्तुति करने
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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