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________________ प्रथम पर्व ६१ आदिनाथ चरित्र क्षीण होने से, क्षीण तेलवाले दीपक की तरह, राहमें ही पञ्चत्व को प्राप्त हुआ; यानी देह त्याग किया । छठा भव ܘܐܝ १०० 2 जम्बूद्वीप में, सागर - समीप स्थित पूर्व विदेह में, सीता नाम्नी महानदी के उत्तर अञ्चल में, पुष्कलावती नम्म्नी विजय के मध्यमें, लोहार्गल नामक बड़े भारी नगर के सुवर्णजंघ राजा की लक्ष्मी नाम्नी स्त्री की कोख से ललिताङ्ग देव का जीव पुत्र-रूपमें पैदा हुआ | आनन्द से प्रफुल्लित माता-पिता ने प्रसन्न होकर, शुभ दिवस में, उसका नाम वज्रजंध रखा । ललिताङ्ग देव के विरह से दुःखार्त्त हो, स्वयंप्रभा देवी भी, कितने ही समय तक धर्म-कार्य में लीन रहकर, वहाँ से च्यवी; यानी उस का देहावसान हुआ । मरकर वह उसी विजय में, पुण्डरीकिणी नगरीके वज्रसेन राजा की गुणवती नाम की स्त्री से पुत्री रूप में जन्मी । अतीव सुन्दरी होने के कारण माता- -पिता ने उसका नाम श्रीमती रक्खा । जिस तरह उद्यान पालिका -- मालिन द्वारा लालित होनेसे लता बढ़ती है; उसी तरह वह सुन्दर हस्तपल्लव वाली कोमलाङ्गी बाला धायों द्वारा लालित-पालित होकर अनुक्रम से बढ़ने लगी । सुवर्ण की अँगूठी को जिस तरह रत्न प्राप्त होता है; उसी तरह अपनी स्निग्ध-कान्ति से गगन-तल को पल्लवित
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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