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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र लोक-समूह को हितकारी और आह्लादकारी धर्म-देशना या धर्मोपदेश दिया। विषयों का सेवन, कच्चे सूत से बने हुए पलंग पर बैठने वाले पुरुष की तरह, संसार-रूपी भूमि पर गिरने के लिए ही है ; अर्थात् कच्चे सूत से बने हुए पलङ्ग पर बैठने वाले का जिस तरह अधःपतन होता है ; उसीतरह विषयसेवी पुरुष का भी अधः पतन होता है। कच्चे सूत के पलङ्ग पर बैठने वाले को, जिस तरह शेषमें नीचे गिरकर, दुखी होना पड़ता है : उसी तरह विषय-भोगी को परिणाम में घोर दुःख और कष्ट उठाने पड़ते हैं । जगत् में पुत्र, मित्र और कलत्र वगैरः का समागम एक गाँव में रात्रि-निवास करके और सोकर उठ जाने वाले बटोही के समान है। चौरासी लाख योनियों में घूमने वाले जीवों को जो अनन्त दुःख भोगने पड़ते हैं, वे उनके अपने कर्मों के फल हैं; अर्थात् उनके कर्मों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। ... - इस प्रकार की देशना या धर्मोपदेश सुनकर, निर्नामिका हाथ जोड़ कर बोली,-'हे भगवन् ! आप राव और रंक में समदृष्टि रखने वाले हैं,-गरीब और अमीर दोनों ही आपकी नज़र में समान हैं; इसलिए मैं विज्ञप्ति करके पूछती हूँ कि, आपने संसार को दुःख-सदन रूप कहा, परन्तु क्या मुझसे भी अधिक दुःखी कोई है ? चारों गतियों में दुःख का वर्णन । .. "केवली भगवान ने कहा-'हे दुःखिनी बाला ! हे भद्रे ! तुझे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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