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________________ ९४२ आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की क्या परंपराएं और कथा कड़ियां आदिकाल के हिन्दी जैन साहित्य की इन नवीन उपलचियों का मूल्यांकन करने पर यह सरलता से ज्ञात हो जाता है कि वे कृतियाँ अनेक प्रकार से रची जाती रही है और इनके मूल में कई तत्वों का योग है। रचनाओं के सृजन के इस क्रम में ध्यान से अनुशीलन करने पर एक निश्चित परंपरा के दर्शन होते है। तत्कालीन स्थितियों में, लेबन पद्धति ने जैन साधुओं के अव्याहत अध्ययन और उपदेशों ने वथा जनता की धर्म प्राण कवि ने मिलकर ही इन रचनाओं के सूजन में परंपरा बनकर योग दिया होगा । माठ विज्ञान में जिस प्रकार एक ही प्रति की विभिन्न विभिन्न वाताएं प्रवासाएं विभिन्न स्थानों तथा केन्द्रों में मिल जाती है ठीक उसी प्रकार जैन रचनाओं के निर्माण में परंपरा को पुष्ट करने वाली अनेक परिवाहियां है। अध्ययन, उपदेश, लेखन, अजैन ग्रन्थों का परिशीलन, लेखन कला जैन श्रमण संस्कृति, भंडारों की व्यवस्था और स्थापना आदि कारणों से जैन कवियों मे लेखन परंपरा को प्राभान्वित किया। इस परंपरा क्रम में इतना जोर पकड़ा कि kwd उपलध कृतियों में इक्का वैविध्य पूर्ण बागवार विवाई पड़ने लगा। यो परंपरा का प्रारम्भ से लेकर मागे तक निरंतर बढ़ने mrat feat jeer faशेष से लिया जाता है परन्तु यही परम्परा बद से प्रतियों पर प्रकार डाला जा रहा है उसका मूल परंपरा खुद से थोड़ा इटकर राम की कथात्मक स्थिति कम इस व्यात्मकता में मी एका सवै विमान रहती है। 200 हिन्दी काव्यों में अनेक तथा कृतियां मिलती है, जिनमें विकास और वन माहै। परन्तु इन रचनाओं में से भी स्यात्व के विकास के लिए ही तिथी गई की और क्या पूर्वी की धारा किसी निश्चित परंपरा जन्मा (CYCLIC ORDER ) की तिबलती रहती है। गतः परंपरा से कृति स का है। का निखर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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