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________________ ९२० में लिखे श्री मुनिजिमविनय जी के विचारों को उद्धृत किया है। गहय काव्य के क्षेत्र में गद्य काव्य की परम्परा को आगे बढ़ाने में वास्तव में धनपाल की तिलक मंजरी मे असाधारण योग दिया है। मुनिजी का भव धनपाल के इस प्रन्थ में सम्बन्ध में पर्याप्त महत्व का है- समस्त संस्कृत साहित्य के अनन्त ग्रन्थ संग्रह में बाप की कादम्बरी के सिवाय इस क्या की तुलना में बड़ा हो सके, ऐसा कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है । बाम पुरोगामी है।उसकी कादम्बरी की प्रेरणा से ही विलक मंजरी रची गई है पर यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि धनुपाल की प्रतिभा बाण से चढती हुई न हो तो उतरती हुई भी नहीं है। अतः पुरोगामी ज्येष्ठ बन्धु होने पर भी गुण धर्म की अपेक्षा दोनों गद्य महाकवि समान आसन पर बैठाने के योग्य है | घनवाल का जीवन भी बाद के ही समान गौरवशाली रहा है। इस कथन में तनिक भी प्रतियोक्ति नहीं है। तिलक मंजरी का अनुमगन गय काव्य के क्षेत्र में दिगम्बर जैन कवि वादीपसिंह के प्रथम चिन्ता ने किया। इस रचना के पश्चात् लगभग ४०० वर्षों तक श्रृंखलाबद्ध गद्य काव्य लिखे जाने की धारा सूख सी गई। मुक्तकों के रूप में गद्य काव्य के यत्र तत्र उद्धरण मिलते अवश्य है पर मे परम्बरा निर्वाह के लिए भी कहे जायेंगे। १५वीं बाबूद २ वामन मटका बैग पूषात दरित मम काव्य जन्य ग्रन्थ मिलया है। पदम विन्यास, मार्ग सरस बलकार योजना किंवा बाप के श्यमाने गर है। भाषा सरल और मधुर है कवि ने विवेचन प्रयुक्त लिया किया है। संस्कृत के पश्चrag काव्य की प्राकृत भाषा में कीं कहीं मोजना की विनता मिलती है। देखने को मिली है। इनमें कोंके में भी काव्य का था आनन्द मिलता अपभ्रंश में गइम का स्वख्म पूर्वी है जिसे मध्य काव्य के पूर्वी वर जा सकता है। १- कल्पना: मार्च १९५२१०१ मार्च १९५३ ५०,२११ ३- वही । ४- वही लेव, वही० प्र०१ ·
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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