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________________ १८७ आचार्य सूरि का व्यक्तिगत जीवन, जन्म आदि स्पष्ट नहीं होतामात्र सहायक प्रथों से ही कुछ परिचय मिल पाता है। वरतर ग में इनकी सं० ११८ में दीक्षा व साहित्य साधना प्रारम्भ हुई । अपने ग्रन्थ में इन्होने अपनी शिवा दीक्षा तथा साना पर प्रकाश डाला है।मम पुरन्धर महारथी थे तथा संस्कृत प्राकृत और लोक पाषा या कालीन बोलियों में स्वा करने में उनकी इक्वि अभूतपूर्व थी। प्रन्थ का शिल्प मालावरोष जैली भाशा टीकात्मक पड्पति है जिस पर पूर्व पृष्ठों में प्रकाश डाला जा चुका है प्रस्तुत कृति जैन धर्म के आवश्यक कमों पर लिखी गई है जिसकी मुख्य संवेदना,धर्मोपदेश, बीस वा धर्म प्रचार की वृति का रचना कात स्वयं लेखक के उब्दों में स्पष्ट होता है। रचना ठी उपदेशात्मक अब छोटे और गम्भीर विवेचन कसे में सक्षम है। बारा की कृति उनके भीर अध्ययन, मनन और अनुशीलन का परिचय देती है। यात्मक शैली उदारमों, । अथान्तरन्यानों और दृष्टान्तों से पुष्ट किए हुए गद्य को प्रस्तुत करती है। वहा कृषि की भाषा का प्रश्न है, ऐसी गल मय कवि धरी नहीं है। स्व प्रा और उसके साथ कर पापा बाहर सन्निका पाप पर असाधारण अधिकार नामद भानमा माल्य रति उसमें एक मत पूर्व मार डाला गसि स्वाम चिन्दी साहित्य में मझ्य की तत्कालीन समयमा को सिन करावाचार्य वी का काव्यात्मक प्रवाह मन की रक्षा को और भी निधार दे मालाध ली रखा गया यह पीजी की मिति, समया की वार्षिक मनोवृत्तियों बाकतानाजवजावतानाबमालयाजनान पहारमीकानेर सुरक्षत +साबाबालाकोष-धिका-९० ... वर्ष दीपोत्सब विवो शनिबारे कोलमिटनेमावस्यकात्विषा बालावबोध काषिी सक्क सेतोपका
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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