SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 942
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१५ 'व्याकरण और स्थात्मक गद्य सहित्य के साथ साथधार्मिक साहित्य के रूप में मिलने वाली अनेक जैन मद्य रचनाय उपलब्ध होती है। यी प्रमुख रूप में यदि देखा जाय तो प्रारम्भिक और अभ्युदयकाल दोनों कालों में मिलनेवाली रचनाओं में अधिकतर रचनाएं धार्मिक गद्य की ही है परन्तु फिर भी गय के क्षेत्र में जैनाचार्यों द्वारा लिंबी सरल ग क ात्मक साहित्य निबन्धमूलक गद्यात्मक साहित्य, तरा भाषानुवाद टिप्पणियां टीकाओं, पाक्ष्यों और बालाव बोध व्याकरण आदि केरूप में विशाल संख्यपलब्ध होती है। इस धारा का विस्तार में परिचय आगे के पृष्ठों में दिया जायगाइसके अतिरिक्त ऐतिहासिक जैन गद्य साहित्य, गव काव्य का प्रेरक साहित्य तथा अन्य विविध free य साहित्यमी जैन गय परम्परा के विकास हेतु महत्वपूर्ण है। जिनका विस्तार में विश्लेषण इस प्रकार है: (१) व्याकरण मूलक साहित्य : क गद्य साहित्य के अभ्युदय काल में व्याकरणमूलक गढ्य रचनाएँ उपलब्ध होती है। व्याकरण भ्रजची प्रन्थों की परम्परा गय के प्रारम्भ काल सं० १३०० से ही मिलनेलगती है। व्याकरण पर लिखी गई इन कृतियों की परम्परा का श्रीग की ० १३३६की रा-बारा से होता है। बाल शिक्षा राजस्थानी का एक महत्वपूर्ण व्याकरणग्रन्थ है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस ग्रन्थ में बालकों को व्याकरण की शिक्षा दी गई है। शक ने बहुत ही सुगम शैली का प्रयोग किया है। व्याकरण सम्बन्धी विवा देने में श्रीसंग्रामसिंह बड़े सरक रहे है। पाया में राजस्थानी का अधिक है और प्रकारमूलक प्रवृत्ति भी अधिकांशतः दिखाई पड़ती है। लेखक ने इस रचना में विषय के संधिन्द्र विवेचन के साथ साथ सरल व्याख्या भी की है। शादी कीइस रचना का महत्व इस दृष्टि से और भी बढ़ बाया है कि यह व्यायमूलक प्रवृत्तियों पर लिखित रचनाओं के उद्भव की १- प्राचीन मराठी पुनिजनविजय जी परिविष्ट पृ० २०५१
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy