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________________ दैधि न उपगरी पंडितपणा, यि बधि मा पुष पूरा गई। का महानि मा हिषि यह। (a) बहिवार धनपाल पंडित प्रतिबोध हुआ। परम पावक हु विधि श्रावक विधि कीधी बनाइ अमित की, तीर्थ गुरु देव किस। अनेरा इणि बीभ करित स्तबह नहीं मन्यदा परमेश्वर सपनाया चरितु कीया। ब्राहमण जाउ मोजदेव राजा धागा कहिया मोजदेव रह पुस्तक अमाविउ । बाचिकउँ । पाणियः, पंडितराज चरितु सख विशिधाओ। हिठे उपनाथ, पातियर छइ तिणि स्थानक महेश्वर पावि घगपाल पंडितु भाइ, तीर्थ गुरु देव किट अनेरर न स्तूव । भोजदेव राउ अति आमहि ला । धनपाल पंडित रीस बडी। सीयाला इतउ । सगड़ी बलती ईतीयहि माहि पातिया भोज देव राजा बना पुस्तक वालिया। बा ठिया राति का परिणामी प्रति, किसइ कारणि पमानिनि करउ धनपाल पंडिसि भणिया परमेश्वर हठ चरितु की यळ अनइवालिय। स कन्ट्रातिणि पापियंड, तुम्ह करता मो साहि एकि श्लोक आविया पंडितु मणइ कहाडियागी जेवला पद माक्यिा वा कहिया डिति तो एक बार मना की। Ta रन से रना की भाषा सरलता, सरबता या बात का नुमान लगाया जा सकता है। गिदी साहित्य की धारक रचनामों की परम्पराओं धनमाल क्या का स्थान सर्वप्रथम माना जा सका।साथ ही अद्यावधि प्राप्त हिरीजैन गय परंपरा की स्वनाभी में इस कृति को गवकी प्राचीनतम और सर्वप्रथम माना जा सकता है। महल के प्रारम्भिक उपलब्ध होने वाली इन रचनाओं के पश्चात मा गाहित्यका विकास काल हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है।यह काल मा साहित्य का उत्कर्ष काल या स्वर्ण काल कहा जा सकता है। उत्कर्ष काल की याशिलखित मा कृतियों के अतिरिक्त इस काल में मौलिकम से गड्य की अनेक विधानों का स्फुरण होता है। माषा में भी एक अपेक्षाकृत स्थिरता मिलती है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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