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________________ ८८१ गद्य का उत्सव करने वाली यह न कति की जा सकती है। कृति के वर्षय विषय, ताड पत्रीय पौराणिकता, आवारगत पवित्रता तथा उपासना की विधियों और वर्णन शैली के आधार पर यह अनुमानतः निर्णय किया जा सकता है कि इनका करती अवश्य ही कोई तपस्वी साधक विमान कवि और जनसेवी लोकोपकारक जैन साधु रहा होगा। जो भी हो, कृति साधारण होते हुए भी सावता महत्वपूर्ण है। २. धार्मिक सिद्धान्त मूलक: अध सैद्धान्तिक कही जाने वाली इसी काल की कृतियों में निम्नांकित तीन कृतियों को लिया जा सकता है। .- अतिचार' - ०.३४. २- अतिवारे . सं० १९ - तत्व विचार प्ररम जहा तक इन कृतियों के नामकरण का प्रश्न है अतिचार से इसका विषय स्पष्ट होता है। सम्भवतः अतिनार शब्द से दोषों का परिहार परिलक्षित होता है। मह पी आचरण सम्बन्धी वर्णन प्रस्तुत करने वाली ही कृतियां है। वोनों कृतिया सदशान्तिक है और इनके पूर्व विषय भी नैतिक मनोयों से सम्बनिभा होने कारण चार्मिक है। प्रथम अतिचार अरसा में लिखे जाने वाले हाइपत्र में से लिया गया है। तथा दूसरा अतिवार १९ में शिक्षित वाहन की रचना हो बी तक अतिवार संज्ञक रचनाओं के बस्तु शिल्प का प्रश्न है यह का या सवा है कि में बनाई धर्म के सिद्धान्तों का विधिवत् पालन करने के नियनों का प्रतिवाका करती ।माचार संकलन या किसी नियम का मालिनी अभिचार कलाविले नियम जति का स्थान प्रमुख होता है १. प्राचीन र मान्य ग्रह-श्री बलात-पू. ८८ मागर्म - मुनि जिकिय पू. २१९॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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