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________________ ८७९ भाषा शैली : उक्त चारों उद्धरणों से वीं बताब्दी की इस सर्व प्रथम कृति आराधना की भाषा शैली की विशेषताएं जानी जा सकती है। कृति की भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुत प्रचुरता है पर बढ़ते हुए अयमंत्र के शब्दों की पी कमी नहीं है। गद्यांशों को देखने पर लगता है किवाक, अत्यन्त लम्बे और विरामह दूर दूर पर है अतः वर्णन की यह रैली पूर्णता समासप्रधान कही जायगी । अनेक शब्दों को एक साथ मिलाकर कहा गया है। जहां तक कृति में उसके विषय के विवेचन सम्बन्ध era दूसरे और तीसरे उदाहरण इस पर पर्याप्त प्रभाव डालते है। ममपि इनउदतहरणों की भाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक के पास वर्णन का सौन्दर्य तथा शब्दों की कोमलता नहीं है पदावली का चयन भी हुक सा है । परन्तु कवि की काव्यात्मकता से उसमें एक अभूतपूर्व प्रवाह अवश्य परिलक्षित होता है। अतः वनजन्य सौर्यमेति व बोलि बो सी जान पड़ती है। पर शैली की अनुप्रासात्मकता पदों का प्रवाह और बदों की नादात्मकता लोम विलोमता तथा अभूतपूर्व सन्तुलन देखिए: ● इष्ट अदृष्ट, ज्ञात अज्ञात श्रुत अश्रुत, स्वजन परिजन मित्र प्रत्यति परोक्ष के जीव चतुरासी लब गीनि अपना चतुर्मति की सद प्रमेता भई त्रिया वैचिया सीरीविया हंसिया निंदिया किला निया दानियस पाटिया किया विनारि भवति भवसि भवति मनकोटिनियन का ती सर्व पिच्छामि टुक्कई ।" सार्थक और विपरीतार्थक शब्दों की योजना कितनी असाधारण है शब्दों में संस्कृतमयता होते हुए भी अपच की प्रभाव सर्वत्र हेऔर साथ में प्राचीन राजस्थानी भाषा का भी । इन्हीं सब कारणों से कृति में एक सरसता और सरलता आ गई है। वीं शताबूत की गय की इन प्रवृत्तियों के आधार पर यह कहा जासकता है कि मनुवधि इस जुग में गम की प्रवृत्ति हुई परन्तु ये रचना अधिक मही प्रतीत होती। इनमें स्वतंत्र रूप में कया आदि नहीं है। माराधना अतिवार refer बादि कृतियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये रचनाएं
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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