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________________ ८६० “धन्न हे नमर जाहि सामि सीमंघरो, विहरए भन्ध जम सब्द संस्यहरो कामघट देवमणि देव फलिया बीय परिणीय मामिलाई मिलियड नाव गुणि कान गुपि चरण गुणि मोडिया,सार उवगार संपार संबोडिया रयणि दिणि हरित वधि सुस्त मागरमणा, बाद मनान कार्यति विलयम जमा सिसि कर रिविकर क्षिर संकरा, विक्य विश अभियभर सामि सीमंधरा कर पुल जोडिकरि बानिमुणियो, बाल जिम हेल दे पाय बुह पयियो मोह पर मान पर लोप पर परियउ बमपर रागार काम भर पूरिमो इस प्रकार कवि जीवनोधर के लिए अनेक शुभ संकल्पों को याचना करता है।रचना साधारण है। इसी प्रकार स्तवन मंजक अनेक रचनाअई है जिनका उल्लेख परिशिष्ट मेकर वीकरों T महापुरुषों के मांगलिक पर्व, जनमोत्सव तथा संयमभी वरण के अवसर परउन्हें विविध तीर्थों के जज से कला द्वारा स्नान कराते है स्मान करते समय जिन भावनाओं का रक्य होता है उनको कला मा अभिषेक कहते हैं। तीर्थकर प्रतिमा को आनबिन हो मम खान कराने समय में रचनाएं प्रशस्ति स्तुति मादि के पास की जाती है।कला शक रखना मुक्तक है तथा संख्या में अनेकों प्राप्त है। एक दो का परिमय भी दिया जाता है। इनरवनावों में नावात्मक पद इनकी सबसे बड़ी विगवा है। रचनाएं १५वी प्रथा पी बादी वक मिलती है। - - नाम स्वापी मामा मापन की स्तुधि मूलक यह रचना है। भाषा भरसक बना रचना की काव्यात्मकता के उदाहरण दुष्टस्य। देवादि विपिरि मंबरे, देव बप्पड सामिपी बरे बम पड संग मा , डिया संडक्षण अहसा संडला
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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