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________________ ८५४ श्री जयर स्वामी गीतम् वयर स्वामी के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला यह छोटा सा गीत है। यह जन भाषा काव्य रचना ७ कड़ियों की है। रचना स्थूलिम गीत की ठी मंrति र लेखक की है। माषा में जय का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। इनगीतों में कथा त पी मिल जाता है। भाषा का उदाहरण द्रष्टव्य है: पुनि सो वैदह बहर सामि मिलि सहि साथ इति संन्द्रिय चाड र मियो हंदु धारि राति दिवस रोवइ समास मुनि आनु घरि सुनंदा मग न देई वो जहले इन्ह धनगिरि पनइ इम्हि नाव दे होइसी बामनी पलिता नइ देर ह ना हेडर जिनि पढिन ग्यारह अंसूत वि यह वंदहो बदर सामि जो जगि पर्वतो वयर स्वामी नेमिनाथ, जम्बू स्वामी तथा अनेक तीर्थों के सम्बन्ध में अनेक गीत है जिनका नाम सूची में दे दिया गया है। इस प्रकार इनगीत काव्यों इनके ईद और परवप्रथम होने की प्रवृत्ति स्पष्ट काव्य की दृष्टि से में रचनाएं महत्व की है। संस्कृत स्तोत्रों की भांति इनमें वह बरसता नहीं है परन्तु काव्य रूपों के वैपिन्नय के कारण ही इनका महत्व है। स्तोत्र स्वसंरचना भी बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध होती है जिनमें ये कुछ रचनाओं का परिचयात्मक विवरण दिया जा रहा है। शताब्दी से ही इन नाओं का बाय मिलने लगता है। जयसागर (सं० १४८५ ) ने अनेक स्तोत्रों नहीं है जिनमें से कुछ इस प्रकार की रचना की है। वे स्वोन मीतों की भांति - अभय चैन ग्रन्थालय बीकानेर में सुरक्षिय
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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