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________________ ८३० तिजग समविस्त रिसवरह सुपवित्व मिया प्रत्तस्स रे भगई सुचरित्वय विवह विपास विलसेवि विवापर लहहि सो सन्त रस्साक्यं सिवपुरे (R) प्री रचना सरस और जन पाया प्रधान है। पाषा में यद्यपि अपच के शब्दों का प्रभाव सर्वत्र है पल फिर भी अधिकतर पुरानी राजस्थानी के शब्दों की प्रभाव-सर्वत्र की भरमार मिलती है। रचना प्राचीन है तथा धात्मक संवानों में लिखी गई है। गापुनकम की प्रति का चित्र भी संग्रहीत कर दिया गया है। वीं ताब्दी के उत्तराईध के प्रमुख काव्यों में से एक मृगापुक्क भी है। इसी प्रकार उक्त अध्याय में जिनी रचनामों पर प्रकाश डाला गया है ये सब पाप्त पहत्य की है इसीलिए का गौष काब्य परंपरा जीर्षक के भन्नड मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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