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________________ ८२८ (१३-१४) सजीव वर्णन कवि प्रस्तुत करता है। वर्णन की प्रत्यादिकता इष्टव्य है: - सुत मिल्ने समतुल्लया संजमो, चित्त विवोदि ठावे समो पंद मुंडव्या भारु अहि इक्करो, बच्छ आजम्म बहेवर इक्करो डा का डाय नावीस परिसका युद्ध कुमाल देण तु दुस्सहा केस ठोय सिरे दुक्करो दाख्यो, गाम मासु विहार इतका पुनः मृगापुत्र समस्त नरकों इसों का और पूर्व भव में किए पापों द्वारा पाये हुए संकटों का स्त्री और रोमांचक वर्मन प्रस्तुत करता है। नरकों में लोहे में नाना पहाड़ से विराना, करोड़ों वर्षो तक की यातनाएं करवत से काठ की माडि चीरा जाना, कोल्हू में पील्डा जाना तन्त वयों से जलाना, गर्म स्त्रीपुतली से परस्त्रीगम का दन्द्र आदि सभी हृदयद्रावक है। वर्जन की अनुप्रासात्वि कया तथा सीतादेविए: देवकर सिर कह जिंग विदति, पण निधन पहि मोट लोड हि दिल म हूं पीलीउ, निवड नाराय नारवीयडू डिि पुव्यभव पाव पचारिक पीडिउ, बिलम बंधेहि बहु एहि मीडिय तत्व तथा नापा, सुरा नखाई वरिय पवारी मरा देवि परमणि परिरंभ, पुलीय करिति परिस पन नई बहिन इ नरम मिंतरे, पुढदि अप वाउ वना मितरे (११-३१) तिरिय प्रतिदिन कसि विडि उ रम सम्पन या पईि थाइ, निरर्हि निकरण नमो वाि ass विनय पारं मनुका, बेकुवा मंच मन्यनि विपूत पी, पूठि गान पछि पीडित कर गाँव भूरि मारेहि वयसेवक बारंग इममेव afe face वर्तत इंड नारिदं इसी पालित नवाये दामों परिय पीवरिडिविदारित अरी) ●
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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