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________________ ८२२ आत्मा का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करता हुआ कवि प्रारम्भ में ही मनुष्य को उसकी ऊंचाई पहिचानने की प्रेरणा देता है। शरीर से वह निशान्त अलग है। पाप में लिप्त मनुष्य के लिए आत्मा की पवित्रता अत्यावश्यक, पाप कमक शरीर की आत्म ज्ञान के साबुन से ही धोकर स्वच्छ किया जा सकता है। अतः पायल को ज्ञानको ज्ञान सरोवर में अवगाहन करके छुड़ाना चाहिए: पितरि परि पाउमलु मूढा करहिं समूहा जेल or feeants आदा रे किम जाय समूहाणि ज्ञान सरोवर अभय जठ मुनिवर करइ सहानु भट्ठ कम्मल धोवfर्ड मार्गदा रे पियड़ा पाडु णिवाण ॥१ इन भावनाओं में पाइड दोहा से पर्याप्त भ्राम्य है। इनको देखकर यह कहा जा सकता है कि कवि पर सं० १००० में विरचित पाड्ड दोहा काव्य का पूरा पूरा प्रभाव पड़ा है और यह भी कहा जा सकता है कि पाइड बोडा ही इस रचना के मूल में रही हो। रचनाकार ने गुरु की महत्ता पर प्रकार ढाला है गुरु कही एक ऐसा वाचन है जो आत्मा से मिला सकता है।गुरु भी कैसा जो गुरु है कुरु में sant बना नहीं हो सकती। बच्चे गुरु की दृष्टि में सम्यक्त्व होता है और वह आत्मत्वस्य हो जाता है और उसी बच्चा नाद में रंग बाबा पाइ दोहा की इन पक्तियों को देखिए: ye fear गुरु व किरन, गुरु दी दे - अप्पा बुद्धि परम पर जो दरमा fast की कीमति मिलाप देतिर:- साथ ही चाकूड दोवा के उक्स दोडे से इन पों को मिठाइ: कविवर गुफ विष कि, गुरु रयमत्वय बा की दरियाव सेवक मादा भव जल पावइ पाक बिरन धीरथ का म जो दरिसावर मेव
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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