SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 860
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को निर्वेद निष्पन्न कर समाप्त करता है: बात तलब सुर कुमर समान वह पय मावति चिह नारि इटव पावहि पियह सम्मान बीवहि नंदन निवड बड़यण बयना किंपि सुवि, किंपि प्रणियनिय मावलिम चरित तुम्हारत वनिउदेवि परि मनोरह अम्ह अपड नेमि जिसर चरन पोय महरि अंबिका देविता संघह सानिधु करि मुह मोय, देहि मपछिय उदयरिधि (0) इस प्रकार पूरी रचना का शिल्प अपने ही प्रकार का है। बहुत सम्भव है कि कवि ने कम्म क्या होने से ही इसका नाम करण बलहरा किया हो। प्रस्तुत तालहरा घटना प्रधान है।पापा लोक भाषा है। बता पूरा काम अत्यन्त सरल ज्या प्रवाहपूर्ण है। -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy