SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 836
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७९१ जैन कवियों द्वारा लिये बारहमासे १वीं शताब्दी से प्रारम्भ हो जाते हैं तथा प्रत्येक शादी के उपलध होते है। १वीं से लेकर २०वीं शताब्दी तक जैन कवियों ने भारतमा की इस धारा को अव्याहत आगे बढ़ाया है। सी से भी अधिक बारहमासे नाहटा जी के संग्रह में विद्यमान है। इन कवियों में सामान्यतः चैत्र मसान्त से ही बारहमासा प्रारम्भ करने का नियम है परन्तु भिन्न भिन्न कवियों ने अपनी कवि के अनुसार किसी मी मfe को मुख्यमानकर उसी से वर्णन प्रारम्भ कर दिए है। Array or aमान्यत: विषय विरह वर्णन होता है। ग्रीन वर्षा शिविर आदिरियों में विरहिणी नायिकाओं का जीवन विप्रलंभ पूर्ण हो जाता है अतः बारहमासों में विप्रलंभ अंगार ही प्रमुख रस होता है। अन्त में मिलन द्वारा कवि रसनिष्पटिव में सहायक होता है कई बारहमासों में मिलन नहीं भी हो पाता। ऐसी स्थिति में पैसे बारहमासे विप्रलंभ में सराबोर विरह काव्य बन जाते हैं। संस्कृत का मेघदूत, अपच में सर्वेश रासक और पुरानी हिन्दी की विनयचन्द कृति नेमिनाथ चतुष्पदिका ऐसे काव्यों में से हैं जिनमें बिरइरस पूर्णतः छलकता है। areerat aafe को अपनी काव्यात्मकता और वर्णन erwear feear का पूरा पूरा मनसर लिया है। तो यह है कि यह व वर्मन ही ऐसा है, जिसका माविकाओं के माध्यम से रियों का जील पर प्रभाव स्पष्ट करता है। रिहन्द और उसके उत्प्रेरित रिगान, कोयल और पीछे की वावी, उबीच के उपादान आदि सभी ग्रत्य जीवन में एक और भी उत्पन्न करते हैं। हमारा के प्रकृति और मानव इस और प्रसिद्ध है। ठोको बिर भी अधिक उल्लास और बाद की वर्षा करती है। विभिन्नों में होनेवाली रिजनों के अनुसार उत्सव, व्रत तथा रिनाब बीकन को ति करते हैं। और उससे जीवन में एक महरा प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त रितु जब हमारे बानपान विवाह भोजन
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy