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________________ ७७९ अपाममा पूर्वावली आदि प्रमुग है परन्तु काव्य की दृष्टि से रचनाएं साधारण है। चारायण शक रचनाएं पी प्रधान है। गहच मात्रिका रद का एक पेद है। इस मद में भानु ने गे सन बवार है उस नियम की प्राय: कवियों ने उपेक्षा की है। वीराज रासो में प्रमत इस छद का प्रयोग बन्द ने किया है। सूरदास में भी बान्द्रायण कि गावा है। इस छन्द का सामान्य लयम .. कुल २५ मार था , पर यति मात्रा जगण में मैं ( m, या "मात्रा रगम व्या अ मिलता वस्तुतः महन्द मालपम दिकवि प्लगबमिलता जुलता है। पुरवासने पदोंटेक के सय में इस छन्द का प्रयोग किया है। कवियों ने इस छन्द को इवनी अधिक प्रसिद्धी प्रदान की कि इसके नाम से उन्होंने रचनामों का नामकरण भी प्रारम्भ कर दिया। बस्तु चान्द्रायन की परम्परा प्राकृत से भी मिल जाती है। रचनाएं विलेपन बाक्ति: प्रस्तुत राना बनेर के माहारा गति । रखना । रमा जियोरिमा यी है। जियोषीय रामा कवि मी सस्या और या यिा । का र माविकी होता यो कठिन और विमा प्रधान होकिवि उपासना में इनकार चिनप्रबोष e morरला की नवीनता, .-भाली विमान कीषिक देशि भानु प्रभाकर पु.९५५-५६) + मारव वीर सागरण ब्यो-देखि रखामर-मब १५०
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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