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________________ ७७६ गीतों के बत्वों का बाधार लेकर चलने वा इस बेटी को शिष्ट साहित्यमें प्रचलित करने के कारण ही रेल्बा महत्वपूर्व रना प्रकार कहा जा सकता है। माय कवियों के रेलमा काव्यों का रेखा के शिल्प को समने के लिए अध्ययन किया जा सकता है। बों की एक होटी सी रचना है जो सलमेर के भंडार उपलब्ध Tई है। रजनाकार भाव है। वि में प्रारम्भ में ही आपली मा टेक के रूप में बहु रतु मवि रलिया जाइए.- एक बड़ी दे दी है। काव्य की दृष्टि से रचना साधारण भाषा वीं बाइदी के बापान की है।रमा मेय और कम प्रचलित है। मानों के उपकल बरित को अपना बाबा बनाने के रूप में मिल गई है। भाषा का प्रवाह और बाद ममत्कार दृष्टव्य है: देसन र वि अश्यारित गल मावि कर दिय माहि मोड काजल बना सच था धम्म विउ वित नामा गावि गyिa लिामर नामिनि मिडिया माडि विपरि बाल बन्या नि माविकोहरा मिति सहित निकास यि सत्यक समान बाबा मामिल रहा बाममो इमि पर पशिक्पि संचाधिरि बाबा () मबरस केस मान समाचार रामबाण बाबा मरि विमरिया बस मुभिमा ) जीपालमा रेवा: हा सिसी यह रचना भाषा और काव्य की
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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