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________________ ५४ भाषा की दृष्टि से इस रचनाओं की ध्वनि, शब्द, रूप और वाक्य विन्यास आदि का शोध पूर्ण विश्लेषण होना अत्यावश्यक है। इन कृतियों की भाषा का अध्ययन इसलिए भी अत्यावश्यक हो जाता है कि प्राचीन राजस्थानी जूनी गुजराती, प्राचीन ब्रज, मालवी, आदि विभाषाओं में अपs के ara कितने हैं, डोरसैनी और नागर अप से देवी पाकाओं में पारस्परिक सम्बन्ध क्या है, तथा उत्तर अपभ्रंश ने हिन्दी का स्थानकितनी तरह से प्राप्त किया है आदि सभी महत्वपूर्ण प्रश्न इन कृतियों के शब्द, रूप, ध्वनियों आदि के वैज्ञानिक अध्ययन होने पर ही डल हो सकेंगे। अतः प्रस्तुत प्रबन्ध में भाषा के प स्वतंत्र शोध का विषय समझ कर अनुसंघित्सु स्नातकों के लिए को भाषा विज्ञान के छोड़ दिया गया है। । कृतियों का पाठ सम्पादन इन रचनाओं का पाठ सम्पादन हिन्दी साहित्य के लिए बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है। परम सौभाग्य की बात है कि हमारे देश के विभिन्न विश्व विद्यालयों ने पाठ विज्ञान को शोध का विषय बनाना स्वीकार कर लिया है। अतः अब बहुत सम्भव है कि पाठ सम्पादन पर इन कृतियों के लिए कार्य हो सके।राजस्थान ही नहीं, गुजरात, मालवा, इन्टेल, दिल्ली आदि प्रदेशों के जैन अजैन भन्डारों में विशाल संख्या में प्रतियां परी पड़ी है और जब तक उनके सम्यक वैज्ञानिक सम्पादन होकर पाठ प्रकाशित नहीं हो जाय तब तक इन कृतियों के विषय के सम्बन्ध में कुछ भी कह समाजसम्भव नहीं, तो कठिन अवश्य है। जैनियों के माहों में मयावधि यह परम्परा प्रचलित रूप में मिलती है कि उनकी प्रतियों का इन प्रचार हो । मतः यह astryक धनी जैन आज भी प्रतिलिपिकारों को आजीविका प्रदान करते हैं और प्रतियों की प्रतिलिपि करवाते है। साथ ही एक ही बाबा की अनेक प्रतिमां राजस्थान, गुजरात के विभिन्न भंडारों में मिलती है जिसपर विभिन्न कलम से प्रतिलिपि होने के कारण अनेक प्रकार के प्रादेशिक प्रभाव ब्रूम पड़े है। बवः इन प्रभावों और प्रदेषों से मूल पाठ की रखा करना परम आवश्यक प्रतीत होता है। बस्तुतः पाठ
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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