SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 797
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१२ ने इन गुणों की महिमा आदि को स्पष्ट यिा है। वास्तव में साहित्यिक सौन्दर्य की इष्टि से इस रचना में अधिक नहीं है परन्तु फिर भी इनका ऐतिहासिक महत्व है शिसमें रचनाकार ने विविध मुन्नों की पट्ट परम्परा से लेकर विविध सास्कृतिक क्या ऐतिहासिक स्थानों के साथ उनका महत्व स्पष्ट किया है। का प्रारम्भ कवि ने गुरु महिमा और बाद गुरु के गुणों द्वारा किया है: सो पुरविड जीव अध्यन सम गाइन हो मु सब्बर सिधान्त मानद मो पुरु अरु मील धम्म निम्मा परिपाल गौ गुरु गुरु दम्य संम विसन सम मनि टालइ ( मनु के साथ ही साथ कवि ने मर्म की महिमा का पीसान किया है: पम्प सुषम्न पडाप बत्य नहु गीय हमियह चम्म अचम्म पहाइ अत्यनाइ भपिया चम्म म पहाजत्य मह चोरी किम्बई चम्म धम्म पहाफ जत्य पत्थी न रमिया मोपम रथ को पुन डिवबान पीकपाल को सिर नि परसखि मरमानी () बामे प्रत्येक कवि विपन्न पनि की भाना, या प्रमाबना पर विवार या सिने पुनियोलोर स्थान, पब माविका विवाकि माय स्पष्ट बाबो ग्वार निरिऔर मिनी समाधी सपा मिपूर पटी पनि - - - - शाम र नवम |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy