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________________ पड चक्कवटि विसयार सिद्धिं रमइ रंगि जनु इम गइ वसु अप्पकन्न पहि तरि किं परजन जागा वगइ (६-७) - ७४८ भरत सरि यल पुल्कि बुक् संजम जनसर कुम वंद लड्डु मा ठाय तिमि कासग क्यु इड जमीन नाम माम धरि बच्छर रक्ि ass पुरक बहु इरक बहनि न केवल ि निय बहिनि रिससरनंदन बाइबलि सवल कन् वरकवि सर (९) सुन्दरि क्यान मय भयगल जब परिहरड और इसके पश्चात कवि का काव्य चंपापुरी और कौशाम्बी की अमराइयों में डूबता हुआ जंतूस्वानकी को अपने उपदेश का विषय बनाता है वहा तक कि इन्हीं महापुरुषों के उत्कृष्ट आदर्शो और चारित्रिक गुणों से वह हृदय के समस्त मनोबल को उभारना तथा जीवननिर्माण कर दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण कराना चाहता 1 चरित्र के की प्रतीक पुरुष स्थूलभद्र का चरित्र उठाने वाले गुरु वचनों की काव्यात्मक महिमा देखिए: धूम शुरु यदि कोटा हरि प विवाद र सविन निर पुरारि समरजि विि धारवरिपरि बीड विमइन्कमन ये बीमार मस्त मडी पीठ बाम मानव जीवन को या उठावा है तथा मानवता का पालन करना सलवार की चार में धानो हैऔर जीवन को स्वस्थ दृष्टिकोण और की और माहि करने वाला वही काव्य में कविता है जो मानव जीवन के बाहर बम बमको करके चला है। प्रस्तुत सध्यय का निर्माता कवि जनता का का है। और वास्तव में चरित्रं विना
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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