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________________ उपदेश माता कहापय एप्पब, वीं बाब्दी पूर्वाइप में काव्य छप्प छन्द प्रधान भी लिखे गए है। जिनमें उपदेश माला काय सप्पन अत्यन्त महत्वपूर्ण रचना है। प्य छन्द में काव्य लिले जाने की परम्परा पाचप्रादीन है। प्राव बौर अपांच में दम्पय छन्द का प्रयोग होठा माया है। न ही नहीं, सत्कालीन न काव्यों में भी छप्पय हाद का प्रयोग मा वीराब राबो को एसई माया ममता है। मादिकाल की इस जैन परम्परा में इस सन्दकतियाँमा कारनी होने लगे और उनमें उपदेश पाला हाय की पूरी रचना इस नाम का उत्कृष्ट प्रमाण यह रस्ना प्रकाशित है। पूरी रचना क्यों कि प्य सन्ध में लिपी गई है था प्य सन्द की इसमें बाइयोपान्त प्रधानना : इसका नामकरण इस छन्द के आधार पर ही ना है। सन्द के रूम में अध्यय एक संयुक्त सन्द है वो रोका (१. 0 बार पद और उल्लाला (१५. "दो पाद के योग बना यो उम्लाका मेवों हो इसके अन्तिम बरबों की मात्रावों का जमा १ और २८ तक बताया है और २८ मात्रामों में कवियों ने न लिया है। प्य छन्द के प्रस्तार की भा ने अपने MPE प्रमानों का दिया है। वो मी, मना सन्म य प्राचीन काल का प्रयोग होता रहा है। सुब रमा सिसी या इसडि रमागर श्री नाराका स्पष्टीकरण मावस्या प्री और सी.वी देवामानों are नारामा मेषमा सरिकातिय बरि meme t- प्राचीन पुर wasी का -- t-1
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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