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________________ जिनको कवि ने पूरा छन्द में लिखकर समाप्त किया है परन्तु कई इसके अपवाद भी है। हम्दों के आधार पर नामकरण की गई रचनाएं अपमंत्र से ही मिलने लगती है। यो इसके पूर्व प्राकृत में भी इसकी परम्परा का होना निर्मात ही कहा जायगा क्योंकि हम्दों की परम्परा संस्कृत से निर्वाच स में आगे बढ़ती एवं काव्य को गति प्रदान करती रही है। वस्तुतः इन काव्य रूपों का महत्ववरम्परा को पुष्ट करने के लिए भी सार्थक है। इन्दों के आधार पर मिलने वाली इन रचनाओं का संदिप्त अध्ययन इस प्रकार है: उपदेश प्रधान: ७४० दोहा एज्क्क्छ अत्यन्त लोकप्रियता को प्राप्त हुआ ठीक उसी प्रकार बोडा सन् अत्र का लोकप्रिय छन्द रहा है। इसका प्रारम्भ ठी शताब्दी के पश्चातु से ही मिलने लगता है। प्राकृत साहित्य में जिस तरह गाथा में भी दोहे का दोड़ों के मिलते है। नीरव के साथ साथ अन्य क वून प्रयोग हुआ। में तो मुक्तक महों के मी वियों ने भी दो का प्रयोग किया है। है। ग्रन्थ रचने वालों ने इस छन्द का खूब द) की रचनाओं में दोडा aftart और व्याकरण आदि प्रयोग किया है। केप सम् अव का परम लाता में भी दो का प्रयोग मिल जाता है। वह रहा है। को दूरान् केही कारण १)का स्वामी में के बाद भारतीय होता है प्रवेश तो इसका बहुत पहले ही हो चुका वापरावी सदी में इसमें मार को वीर को धर्म को और नीति को लोकविस में प्रवेश करने का व्रत किया धर्म के ब और राम के नर्मी उपदेशों को इसमें प्रचारित किया। बरन्ड किया बाद वृद्धों विद्दों की रहस्यवादी भावनाओं का वास्तू मना, गोरखनाथ जैसे जमाने वालों का सहायकहूआ और कबीर जैसे बद का संदेश वाक बना अंगार के में इसकी इंडमी बहुत पहले ही का
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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