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________________ ७२७ आदिकालीन हिन्दी अन साहित्य(२) नीमकाव्य परम्पराएं। पिले अध्यायों में काव्य के जिन विविध व्यों की परम्परामों तथा खत्मक जिन इतियों का अध्ययन लिया गया है उनके अतिरिक्त भी विशिष्ट काव्य स तथा कृषि और मनोग है। उन पर विशिष्ट महत्व होने से रमा प्रकारों में वैविध्य की दृष्टि से स्वत्र से विवेचन बाछनीय है। ये रचनाएं अपने ही प्रकार की है। बपिने संस्था में कम है परन्तु फिर भी इसका अपना स्वतंत्र महत्व है इसीलिए इन्हे मौन काब्य परम्पराएं कहा गया है।इस कामों और काम कलियों में तो ऐसी है कि जिनकी परम्परा के प्रारम्भ का श्रेय की आदिकाल हिन्दी जैन साहित्यको विषय, कला, मर्ष गौरव और वैविध्य को इष्टि में रखते पर मौन का परम्परा के वर्ग इन काम स्पों पर संदेष विचार किया बाया सा है। इस प्रकार इस साहित्य में विविध काय परम्परागों का भीममेड या उन्नयन हुना है। काव्य की दृष्टि से रवनाएं * काव्य या पुस्तक दोनों मोष प्राप्त है। विषय की इष्टि में इनका अध्ययन करने पर इनों ब्रत, साधना, पक्तिमान, मल अभिनय, वीर्यवर्मन, तीर्थकर वर्षन भागों की दीवा महोत्सव वर्णन या नीति-कम बादि वर्गम मिला। जिनका अध्ययन रकमानों बिल झारा बना। इन माम माँग वर्गीकरण इस प्रकार रिया वा मना : () बान रखनार, और (a) वि प्रधान रखना। याब रहा। -योग
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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