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________________ ७२५ गिरिवर सिरि बगाऊ दीह, पिडुलप्याणि दुइगा लीड सीह निमिज्जा मामिप्रसाद ऊं गाव त्रिवि प्रवाद सोलस तोरण माणिक त व भक सोहागणा अठ मंगल सोलस सोहति जे देखी रिविड मोर्हति च्यारि च्यारि विहु बारे भला बहुं दिसि मुख मंडप मोक्ला afe मागगलि मणिमय पीढिया मुल्क घाट व विडिवेढिया वहुवरि माणिक चाय धूम, सेवा सारई सुरनर कम (५-१०) (१५) वसु वरि इन्द्रवजा लहलहs कीरति भरततनी गह गहइ क व नामि वावड तोरण मंडित त्रिणि पावडी कवि ने प्रतिमा के सौन्दर्य का सुन्दर चित्र खींचा है। अष्टापक तीर्थ की शोभा और प्रतिमा का असाधारण सौन्दर्य श्रावक श्राविकाओं को तीर्थ के प्रति श्रच अनुभव कराने में योग देते है।वन शैली सरल व अत्यन्त सरस है । नाभि जीभ श्री बहबत पही, हाथ पाय सल ताठ्य सही अंत भूमि जो केसह वणी ते उपनिय मय सोतामणी नयन लोग लोचन अति थि की की कविलाइ नई वि ereft reas मूछ जवान रिष्ट रतन बढ़िया कुमा sto जिसी घरवाला वेति, वं क्ली कटि को ठि रगाडी सोवन भय राम, बीच यही वज्रमय तक ठाक रक्त रहन मय प्रतिरेक, निछेहे जाये कि एक विचि िलहूनी नइ सामती, इष्टिहि दृष्टि निरीमिली इन परिवरिका मई, कष्टापदविरि प्रतिमा हुई प्रतिमा प्रतिमा केरिति धान प्रतिमा इढ मूर्ति निपा के पावर ढोति रचन मइ दीसह भूम कोलि धार बढिमा ने बानि हेमरतन नी निश्चल ठापि -4 (२३-२७)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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