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________________ ७३३ काइ जु दीजह दान, विही 'चितवइ नवि अभिमान चित्वि विरित पति हि सबि अध, सो श्रेयं सई लीलइ लद्ध (२-1) गुरु का महत्व, धर्म की महता, कर्मों के दुख, और जिनवचन रत्नों का आख्यान विविध दृष्टान्तों तथा आलंकारिक उक्तियों इवारा स्पष्ट किया गया है विर्षन दृष्टव्य है: समरस रात्रि दिवस मनि धर्म, धर्म समउ मन छंडळ अम रामा धर्म चिहंगति इस धर्म लाइ पामी जइ मुख्य सायर मर्यादा पुम रहाइ चंदसूर गयपि संबह कुशल पंच ते दि आचार सोइ सहगुरु इभव विचार हिव गुरु जाप सो संसारि जेड गुरु पर विचार पाल मे पतावा गोड, पर गुरु बाबई भाको हाघि बनि विद्यमणि रत्न वह कामह जिण बर बचन जिनवर देव धर्म गुरु बाध. और सममि बराई मन सन एक मन का मार राइ, बिर निर्व तो मा विमर निकाल का पुमरि बहराण (४-६८) रबमा का महत्व मा की सरतमा की दृष्टि से स्पष्ट हो जाता है। अपभ्रंश की
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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