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________________ ७२८ फडिज्ज करवत सिरि पाइज्जइ कत्थीरू माइ दुक्ख नारय सुमिउ मह उदूधसई सरीफ (४५) इसी तरह सुष्ठुक्तियों में पूरा काव्य चलता है। कुछ सुन्दर काव्यात्मक उदाहरण और देखिए : न विवर लिज्जइ वस्णपणि सालिमद सुकुमाल मह कुल मंडण कुल तिलयकुल पईव कुल बाल नाई गव्विहिं कुल ताई पाविज्जइ भव छेड़ माइ मरीचि भव मिठ वदुधमाण जिणुदेउ छण मइ लक्ष्ण समवयण तुढ मज्जा बत्तीस ते विलवंती पेम भरि किम करिति कुल ईस छाऊ जेम उड्डइ सयलु अंत उरू घर सारु माइ जीव जड संचरइ छडे विणु ढंढारू sues पुत्त सु चित्ति महु पुत्त विहूषिय नारि विश्वs मुच्चर इह सहइ दीमी परचर बारि (प्रश्न) (२४) ठामिठामि जिन डिडिट मव वरासी लक्त --- (प्रश्न) (९) नम कप्यूरिति पूरिया datta या नारायन बंध निमि ats for a स (उत्तर) (१०) (प्रश्न) (१४) माइ जि सहिया मरय दुइ ब्राड कुजा संग (उत्तर) (१५) Sarfe वैभव का लोभ भी देती है। वर्णन की प्रसादिकता इष्टव्य है:des बगर वर पुत्व बीस घरीज्जड छ मणि सहासन बनतं किषि कारण व्यचित्तु are विलग माइ गड विपुरि रज्जहरे कि बोका वा कर वीर लि रहि न मवड किसि (उत्तर) (१५) कोमल केस, किम उद्धरिति अस हि दिवि दिकि बालु माइ सुगम सुकुमाल (४१) ---
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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