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________________ ७२४ संवेगमा का -------- १४वीं शताब्दी की एक ऐसी ही रचना संवेग मातृका है। रचना ६१ कड़ियों की है और श्री दलाल ने सं० १३५० के ताड़पत्र द्वारा इस का पाठ प्राप्त किया था। संवेग मातृका भी मातृका बैली में ही लिखी गई है तथा पुनियों के लिए, धर्म प्रचारार्थ इसकी रचना हुई है। रचना साधारण है। भाषा में पूर्व प्राप्त कृतियों की भांति पत प्रवाह है परन्तु काव्यात्मकता का अभाव है। इस रचना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कवि ने इसमेंशून्य (०) का भी मूल्यांकन किया है। रचनाकार मातृका का प्रारम्भ विन्दु (०) से ही करता है। रचना चउप छंद में लिखी गई है। शून्य का महत्व प्रतिपादन देखिए: मी पणी किम कवि कहइ मींडा विणु संसार जु ममइ मींडा वणीअ ज एवड वक्ति २ मींड ध्याता हुअ ज मुक्ति इस प्रकार कवि ने शून्य को मुक्ति या साध्य बताया है कि किस प्रकार बिना शून्य की साधना के संसार प्रमण करता है। कुछ उदाहरण इसी तरह के इष्टव्य है, जिनसे स्पष्ट होता है कि कृषि का भाषा की दृष्टि से भी कोई बहुत परिवर्तन स्पष्ट नहीं है रचना साधारण है। भाषा में अन्य कृतियों की भांति नवीन रूपों का वागमन और तत्समता की ओर मुकाव मात्र लगता है। भले मग जात परमत्थ इक कवि संग्रह सत्यु १- प्राचीन जैन भाडागरीय ग्रन्थ सूची: श्री सी०डी० दलाल, पृ० १८९-९० २- वही ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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