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________________ ७१८ आगम क्या पंचमइ अरह, केवल ना प्रभव हुइपरह इसइ कालि समिकत इढ चित्त ते नर जाणे जगह पवित्त इण भवि परमवि सुरकु लेखक बतगुरु तर्णउ क्यणु पालेड ) वीतराम का वंदिसि पाय, उडइ पाप होइ निम्मल काय । सूघउं दान मुनिहि जो देइ, संगम तपउ लामु मोलेइ । 'रिधिहि त लाच जगि लेड, बस ने इम्हि धन वावह दीना दानह नाम जोइ सुपात्रि दीन्हइ बहु फल होइ रीतिहि दानह नथी निवार, उचित दान दोजइ सविवार लिहिय गामि लोडइ स कोइ, कुपात्र विमुहर साहसुस होइ खीर आणि जठ पुचि धातियइ पात्र विसेषिहि तमु विसुधिया कीडन संघ सहस्तणी क्रिया कार्ड जा आगमि पनी (१६) विधि मारय मान सविवार जाप जइ छूटउ संसार (११) कवि ने सम्यकत्व के पालन करनी श्रेष्ठ आप महापुरुष जम्बू स्वामी व प्रभव तस्कर संवाद को क्या का माध्यमक बनाकर रचना को प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया है। मणइ प्रभव नव जोषण नारि परिणिय पुन्न बसिण संसारि काम मोम मोगवि इमि समइ, गोवम महब ले विगड पयशु चरह सोमई वलि कि, मोहरा पाटिल माधिसड मधुविंद साडस शसार, निपनि प्रभव गोइ विचार बगु पिंडाव सबलु बरे गुट विष पितरह पिंड कु वेड रविपति बापट नई बलि किया नाबा तक ना किन पिया महारा नाम क्या प्रति प्रायु पाभली ति (४९) कषि ने किमान वेष्टा के महत्व को स्पष्ट किया है। सेवन मिमा बोक्नु चिनसाठी रहा, जगह माह धूलिभलीइ लाइ Wड राखिन इपि वारि, अमप्रधान जोड सम्म विद्यारि मा भार जिम जाति मीर सीड जो पालो मर धीर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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