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________________ ४८ (३०)_ST० हीरालाल जैम के लेख: ' बिहार यूनिवर्सिटी के प्राकृत जैनलाजी इन्स्टीट्यूट के अध्यक्ष डा० हीरालाल जैन ने जैन साहित्य की प्राचीनता और आदिकालीन पुरानी हिन्दी और अपभ्रंश के साहित्य पर कई लेख लिखे है। ST० जैन के इन विबन्धों से आविकाल के साहित्य की पृष्ठभूमि को सपने में सहायता मिलती है। साथ हीडा० हीरालाल जैम में कारंजा भंडार के २०-२५ अप ग्रन्थों का जो मनोयोग से सम्पादन किया है उसमे विद्वानों को प्राचीन हिन्दी जैन साहित्य कीशोध की प्रेरणा दी है। डा० जैन की यह साधना अपभ्रंथ और प्राचीन हिन्दी जैन साहित्य की महत्ता को समझने के लिए निधान कलश है। साथ ही उसमें परवर्ती साहित्य को सपने और जैन भंडारों में अनेक कृतियाँ उपलब्ध होने की संभावना और अधिक तीव्र हो जाती है। | प्रस्तुत प्रबन्ध का अध्ययन और उसकी मौलिकता पिछले अध्ययन से उसकी विशिष्टता: उक्च कृतियों के कार्य विवरण को दृष्टि में रखते हुए प्रस्तुत प्रबन्ध को देवा जाय तो अनेक रूपों में उसकी मौलिकता स्पष्ट हो जाती है। (१) पुरानी हिन्दी की रचनाएं अद्यावधि जिसने विद्वानों ने भाविकाल के अप और उत्तर अप के जिवनी रचनाओं का परिचय दिया है उनमें पुरानी हिन्दी की रचनाओं का बहुधा अभाव ही रहा है। भयः प्रस्तुत प्रबन्ध में अनेकों पुरानी हिन्दी कृतियों का विश्लेषण इस कमी को दूर करेगा। (१) परानी हिन्दी का अर्थ बहुधा हिन्दी की सीमामों में विमानों ने पुरानी राजस्थानी, बूमी, गुजराती, मालवी और जब को मम भावार्थ मानकर अलग अलग रूप में उनके afare की पची की है। प्रत प्रबन्ध में इन सभी विपाकानों में प्राप्य १-कुलाई, १९५४ मा १४० १०२ पाहित्य में हिन्दी की जड़ ) ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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