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________________ ६७१ दूल्हा तथा बारात की सजा का वर्णन - हिव चादव सविगह महिया , गुस्यइ रिसि धसमसि सामहीयाए गुडिया गयवर अति धपाए, गुण गायइ यण जिण तणार तिवल दूर तडयाडि ए पगि पगि पट नाटक पाटडिए वर सिंगारित रधि चाडिउए, परणेवा उछवि अति चढ़य इसी माति राजल के अंगार वर्णन में कवि का मन पर्याप्त रमा है। सरल भाषा में कवि ने राजुल के सौन्दर्य का वर्णन किया है। गार के कोड़ में कवि धीरे धीर शान्त रस का परिपाक करता है। विरक्त नेमिनाथ पशुओं की काश्य घटना से प्रभावित हो चले जाते है भाषा की सरलता और प्रवाह सुषमा राजुल के विलाप में सजल हो उठती है। कुछ पक्तिया देखिए: एड नेहि रसि राजलए, नवि माञ्चई राबइ साविलए अंस प्रति मन रीजूए, इस जाणे सरिवी जू र तहबिहू सो दुह मनि वसइए, बस नाम सुणीवन उल्हसइए जीहा तमु पूणि गुणि रमप, जवळ इकि मानिय भूद्धिमए सहिय तिवारिय बोलतिए, जम सगल बनमय देखनिय नेमि ध्यानि निश्चल डियर, राजीमति कर दिय दिन रलिए अहसावम सिय छट्टि जिए सो देव दयात्य ब्रत लियर आज अमावधि विजय कर केवल वरदेखण नामघर (१८-२ - जिन चंब सरि वीवाडा - जैसलमेर दुर्ग के बाड़पत्रीय पंडार से यह प्रति मिली है। रचना अप्रकाशित है। इसके रचयिता अनि सलमान है। रचना का मध्यपत्र अटित है। पूरी रचना ५ छंदों में समाप्त हुई है। कवि ने रचना का विभाजन मास और बस्न संजक शब्दों किया है। प्रारम्भ और द नहीं मिलते। प्रति १५वीं सताब्दी के उत्तराईच की ही लगती है। कवि का समय है। देधिः हाइपनीय मंडार जैसलमेर दुर्ग, पत्राक ३४४-४५-४ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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