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________________ नायक का विवाह प्रसंग लगभग सभी चरित काव्यों में एक विशेष तथा महत्वपूर्ण अंश रहता है जो बहुधा अन्य रचनाओं में देखने को नहीं मिलता। सामान्यतः प्रत्येक भाषा में विवाह का वर्णन करने वाली अनेक रचना उपलब्ध हो जाती है। प्रादेशिक भाषाओं में भी इस साहित्य का पर्याप्त प्रजन हो चुका है तथा हो रहा है। बंगला, मराठी, तामिल, तेलगू, आध्र, कन्नड़ आदि भाषाओं में विवाह मंगल संज्ञक अनेक रचनाएं मिल जाती है। विवाहला सशक रचनाओं की परंपरा अपश से ही मिलती है।विवाहला शन्दै यो प्रकारान्तर से तत्कालीन उपलब्ध बारहमासा सज्ञक रचनाओं से जुड़े हुए है। अपय की एक रचना जिनप्रभसूरि विरचित अंतरंग विवाह है। यह छोटा सा विवाह काव्य एक अनूठे विवाह का प्रारम्भ करता है। यह विवाह माध्यात्मिक रुपप है। इस काव्य में वसत राम का भी निर्देश है। अत: विवाह धवल और विवाहला नामक रचनाओं का मूलोइमव अपभ्रंश की ऐसी ही रचनाओं में निहित है। यह रचना १३वीं शताब्दी की है। इसके पश्चात् विवाह संज्ञक रचनाओं की परंपरा आदिकाल की हिन्दी जैन कृतियों द्वारा परिवर्दिधत हुई है। इन विवाहलों में तीर्थकरों के नाम पर अनेक विवाहले मिलते हैं। बहुत से विवाहले जैनाचार्यों के नाम पर भी उपलब्ध होते है। प्रादेशिक भाषाओं में भी १४वीं शताब्दी से विवाहले त्या मंगल संक्षक रचनाएं मिलती है। जिनमें से. १४८१ का कृष्ण विजय काव्य भालाधार बा का है जिसकी प्रसिद्धि कृष्ण-मंगल के नाम से हुई है। इसी प्रकार मनसा मंगल मंडीमल -See preceddings and transactions of the all India Oriental Cent erence serventaenth session Ahamdabad October November 1953-Saetion XIV RajasthanHistory and culture *अन्तर्गत श्री अगरचंद नाहटा लिखित विवाहलो और मंगल काव्यों की परम्परा बीर्षक १० ४११-४२४॥ २. भारतीय साहित्य अनवरी १९५६ पू. ४. मंगल काव्य शीर्षक लेख ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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