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________________ ६४६ वस्तुतः कौन एक दूसरे से प्रभावित है निश्चित नहीं कहा जा सकता। अदिध रासः अणजाषिउं फल किमई म कार' विराट पर्व:- किमइ न जापिठ फल नैव साजइ इस प्रकार कृतिमें तत्कालीन, समकालीन कवियों के काव्य से साम्य स्पष्ट है। दों के रूप में इस कति ने नया स्थान बनाया है। यद्यपि कवि ने इस रचना को कवित कहा है।परन्तु कवित तंद आझ्योपान्त कहीं भी प्रयुक्त नहीं है। समवत: कबिल्त से उसका अभिधा में अर्थ कविता से ही है। भवः इस दृष्टि से इसे कविस्त रूम के अन्तर्गत लेना ठीक नहीं है। गुर्जर रासावली के सम्पादकों ने इसे इसी कवित्त माम के कारण कवित्त काव्य स्म में स्थान दिया है जो सम्भवतः बहुत संगत नहीं कहा जासकता। कवि ने रचना में शुद्ध वार्षिक वृत्तों का प्रयोग किया है। त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध की भाति इस कृति में भी वार्षिक संद है। कवि ने इन छंदों का स्वम्म अनशास्त्रीय रक्खा है इनमें विसी भी प्रकार का पात्रा या देशी दो का पुट नहीं है।वस्तुत: इन छदो औरभाषा दोनों दृष्टियों से स्वा का अपना स्थान है। कुछ शास्त्रीय बार्षिक छंदों के उद्धरण देखिरः- विलंबित माह प असंगम भुवाइ, क्वष कामिनि एह सभी लड़ हिब हठित म मन्मथ मारिबा, एइ जिउडक अंग मारिवा (२०(१) (२५),आदि (२) स्वागता बाद वाजत गई कर मेहि वाश्य हुन पडिउ गति देहि ए इक्षित क न पाडव टाली कूड कापि बहम यह हीवाली (६५) १- मारणीय बियाः वर्ष १ . पू. २५॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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