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________________ ६३८ पर यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने कहीं भी जैन परंपराओं का वर्णन और पालन नहीं किया है। सिर्फ एक पंक्ति में जैन प्रभाव स्पष्ट होता है: जैणि देखि जिण माणस मोहइ १ कवि का लिहूरि नै विराट पर्व को दो भागों में विभक्त किया है: १- दक्षिण गोग्रह २- उत्तरगोग्रह | पान्डव कवि ने महाभारत के विरष्ट पर्व की कहानी को चुना है उसके नायक पाच | रचना जैन सिद्धान्तों, परम्पराओं और अन्य किसी भी जैन प्रभाव से एकदम कुत है। पूरी कृति एक प्रकार का युद्ध काव्य है। विराट पान्डवीं व कौरवों का युद्ध अत्यन्त प्रभावशाली काव्य कौशल प्रस्तुत करता है। पान्डवों का अज्ञातवास और अज्ञात्वैश में युद्ध करना और फिर सारा मेद मुलना इसके उत्तराईच मैं है तथा पूर्वाध में पांचों पान्डवों का वेश बदलकर अपने शस्त्रों को बाहर खेजड़े मैं छिपाकर विराट के पास द्रौपदी को साथ में लेकर जाना तथा पांचोंका दूत, ब्राहृमण, बाल और अश्व विद्या प्रवीण, तथा नट (नूतक) आदि विभिन्न नामों से कार्य करना, और द्रौपदी का सैरन्ध्री बनकर विराट के अंतपुर में वृत्ति स्वीकार करना, कीचक का उस पर प्रवृध होना और मारा जाना आदि वर्णन है। नीच बीच में अवान्तर कथाओं का वर्णन चरित में माख्यान की कथा वस्तु में तीब्रता प्रस्तुत करता है। यह पूरी कहानी ११वे वर्ष की है जिसमें पान्डवों ने अज्ञात वास किया । को पान्डव अपनी वास्तविक स्थिति का स्पष्टीकरण करते है। प में यही कथा का सार है। पान्डवों की बारित्रिक विवेक्ताओं, शौर्य सम्बन्धी गुणों तथा मेरन्ध्री का सेवा भाव आदि अनेक रूपों में कवि ने इस महाभारत के सुन्दर स्थळ विराट पर्व में चुना है। कवि प्रारम्भ में भारती का मंगलाचरण करके वरदान मागता है और अपनी काव्य रचना की क्या वस्तु का भी स्पष्ट उल्लेख कर देता है: - १- वहीं पृ० ३६४१ (The collumalry
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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