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________________ ६३५ बीता सरनर इंद, पणित नेमि जिपिदं, मयमिन छाहीउर नारि न वाहि ए देव पण तूं देव धर्म प्रकटि प्रमुदैिव पवियण जिणि तरंइ रे भव वनिनवि फिरई ए (04-00) गत मत्सर हिव जिनवर नव मइ रसि सलीन खेड संजम आदरइ करइ विहार अदीन दिवस पंचावन पामीय स्वामीय केवल ज्ञान (७९-९०) विरes मिलिय देवासुर समोसरण प्रधान और इस प्रकार अन्त में कवि काव्य का अद्देश्य, चरित वर्णन का परिचय तथा अपना नाम स्पष्ट करता है। कृति निर्वेदात समाप्त होती है। पूरी कृति प्रबन्ध शैली मैं लिखी गई है और कुल ९१ छंदों में काव्य समाप्त होता है। अन्त में कवि परत वाक्य की भांति शांति वचन कह कर काव्य समाप्त करता है: श्री जिनपति भारतीय प्रसादिवि अंतरंग करि केसरि नादिहिं चरितुरचितं मनरंगि लच्छि विलासह लीला कवले ars मोह सामलता विमल, छेद कलि मल मंमि (चरण-कमलि तुम्ह मुंग नैमीसर atederer माणिकसुम्दर सुललित गुण भंडार) श्री यादव कुल भूषण हीरो मेह जैम गाजइ गंमीरी दूध कुसुम सर वीरो तूं बन्द स्वामी सामल धीरो गज जिम सब सहजि बैठीरो, इरिज सा मातु वरीय रिy अंतर की निरजनीया विषम मोह मद जिरिणि दनिया नेमिवर संवाद कुल मा सा राजल राणी मा तू सुभट करता बगि जापी विश्वल शिव प्रासादि
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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