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________________ ६२९ शब्दों का सौन्दर्य, सामाजिक तत्व, भाव की उत्कृष्टता तथा गहनता दुवारा कवि जन जीवन का रहस्य प्रस्तुत करता है इससे कृति का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता 1 मुख्य संवेदना: * प्रद्युम्न चरित की मुख्य संवेदना जन भाषा में नायक के शौर्य, चरित तथा धर्मोन्नति का प्रचार करना है। पूरी कृति में स्थान स्थान पर कवि उपदेश प्रधान हो जाता है। जन भाषा काव्य होने से कवि ने नायक को बहुत ही विस्तार दिया है। ताकि उसके बल पराक्रम और शक्तिशाली व्यक्तित्व से जन साधारण परिचित हो सकें। कवि ने कहीं भी नायक का पराभव नहीं दिखाया है नायक के व्यक्तित्व के सफल विकास के साथ कवि ने जैन धर्म व दर्शन के महत्व पूर्ण सिद्धान्त कवाद का भी पूर्वतया प्रेतिपादन किया है। प्रारम्भ में चौबीस तीर्थकरों की वंदना, जिनमन्दिरों व मुनियों को नायक का नमन, स्थान स्थान पर मुनियों का पूर्व कर्म व पूर्व पव कथाओं का वर्णन सब इस बात के प्रतीक है। वस्तुतः ५वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सधार की कृति अपना विशेष स्थान रखती है । सधार दिगम्बर कवि थे अतः उनकी भाषा पृथ्वीराज रासो की भाषा की ही माति है।पताम्बर कृतियों से सधार की भाषा में पर्याप्त अन्तर है जो मी हो कृति बड़ी महत्वपूर्ण है और आदिकालीन सरल हिन्दी की महत्वपूर्ण कही है। चरित काव्यों में उपलब्ध कृतियों में सबसे बड़ी कृति प्रयम् वरित ही है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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