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________________ ६२५ उदाहरण तथा अर्थान्तरन्यास10 बाला सूर मागासह होइ तिनको जूम सह पर कोई वाल वंड सहसर आइ, नाके 'विसमणि मंतु न आदि वह हाडि गए वप डाउ, ता कहकोण कई परिवार (१) विसहर मुह पाले हाथ, मो मोसह जुझ गह समथ (1) उत्प्रधा मूलक अतिश्योक्ति: विड्याबल तह रच्यो विमाशु, अहि बयोत टोपि ससि भानु मीधीणी स्याउ कर पुकार, जनु जमराय जणबहिसार इनर साजि लप करवाल, माणिक जीम पक्षारी काल (४) महमहन को पिड बडइ, अनु गिरिवर पन्च उखर हा गन्हा पहिया सलकित सेस, यम ग्राम चलित हरि इस प्रकार अलंकारों का वर्णन जन भाषा काव्य को धर्म या नीति, उपदेश प्रचार एवं ग्था को आगे बढ़ाने के लिए काव्य को प्रवाहमय बनाने में योग देता है। प्रद्युम्न चरित की भाषा मरत हिन्दी है, जिसमें स्थान स्थान पर राजस्थानी का प्रवाह स्पष्ट परिलक्षित होता है। कहीं कहीं अवधी कमी देखने को मिलते है जिसका कारण कवि का निवास स्थान आगरा होना ही लगता है। प्रद्युम्न करित की भाषा को आदिकाल के हिन्दी जैन साहित्य की भाषा सम्बन्धी कई उसकी बातों का प्रस्तुत करती है सवय गुलसी मादि कवियों में से ही कवियों से अपने अन्य की रचना करने की प्रेरणा ली होगी। परम्परामा अपच भादों का पी प्रयोग मिलता वस्तुस: कृषि की पारा विमान के सामों के लिए अत्यपयोगी है। उक्त धरण से भाषा व अबों की पूरी जानकारी की जा सकती है। - कृति में कवि ने अनेक गौ नीति वाक्यों मस्तियों और मुभाषिनी'
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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