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________________ ६१० afat की दृष्टि से कवि ने अनेक स्थल जुटाए है। वर्णन वैविध्य में नगर, द्वार तोरण, रनिवास, रात्रि, संध्या, प्रकृति वर्णन युद्ध सज्जा तथा रथ वर्णम सेना वर्णन न वर्णन, युद्ध तथा कार्य वर्णन, अनेक प्रकार की विद्याओं का वर्मन, सूक्ति वर्मन, सामाजिक तथा राजनैतिक बहनों आदि अनेक वर्णन मिलते हैं जिनपर आगे प्रकाश डाला जायेगा । 3 कवि सधा ने पूरा काव्य दोहा चौबाई छंदों में लिया है।पर वस्तु टक, gas और गाथा' आदि छंदों का प्रयोग भी किया गया है। प्रत्येक सर्ग के साथ छंद परिवर्तन के नियम का निर्वाह कवि ने नहीं किया है। 'ब्दों के साथ साथ अनेक अलंकारों का वर्णन भी मिल जाता है। अलंकारों में प्रमुख उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, उदाहरण, इष्टान्त, अपन्हुति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रमुख है। अलंकरण प्राकृतिक या स्वाभाविक है। जहां तक काव्य की लक्ष्य प्राप्ति का सम्बन्ध है, अर्थ धर्म काम और मोव में से प्रद्युम्न को चारों सुखों की प्राप्ति कवि ने कराई है। साथ ही संस्कृत नाटकों की मावि प्रस्तुत काव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह संत के साथ साथ निर्वदा है। काव्य रचना का उद्देश्य जन मावा में धर्म प्रचार, वरित वर्मन कट्टियों व परम्पराजों का निर्वाह अहिंसा और कर्मवाद तथा पूर्वभव आदि सिद्धान्तों की पुष्टि में भी पूर्ण सफलता मिली है। इन्हीं तत्वों के आधार पर वह कृति खंड काव्य की सीमाओं से उपर उठ जाती है और महा काव्य भी नहीं बन पाती स्वत: साहित्य दर्पणकार ने. परित ऐसी कृतियों को पकार्थ काव्य कहा है वस्तुतः न फेंक सक्ल एका काव्य है। जहा तक प्रस्तुत रचना के रचना काल का प्रश्न है यह स्वष्ट है कि वह ० १४९१ में पी गई है। इस सम्बन्ध में प्रतियां दीनों प्रतियों के विभिन्न १- प्रसन्नतिका काठ मागेर भंडार पद १६९ का पाठीवर १७७ २. वह पद १६९। ३- हिन्दी ९ बैंक १-३०१३-२३॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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