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________________ है। अद्यावत प्रकाशित संग्रहों से भाषा साहित्य की दृष्टि से मंगृहीत किए है। अद्यावधि प्रकाशित संग्रहों से पाषा साहित्य की दृष्टि से यह संग्रह सर्वाधिक उपयोगी है। क्योंकि इसमें १२वीं सताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक लगभग ८०० वर्षों के प्रत्येक शताब्दी के थोड़े बहुत काम अवश्य संग्रहीत है। जिसे भाषा विज्ञान के अभ्यासियों को सताइदीवार भाषाओं के अतिरिक्त कई प्रान्तीय भाषाओं का भी अब काम हो सकता है। कतिपय काम हिन्दी कई राजस्थानी और कुछ गुजराती प्रकृति के है। अपयश भाषा के लिए तो यह समा विशेष महत्व का है ही किन्तु ममूने के तौर पर कुछ संस्कृत और प्रा के काव्य मी दे दिए गए हैं। कास्य की दृष्टि से जिनावर मूरि मिनोदय सरि जिनकपरल मूरि, जिनपति मूरि, जिनरागमूरि, विजयसिंह-पूरि, आदि के राम विवादले नही सुन्दर और आलंकारिक भाषा में है जिनको पढ़ने के प्राचीन गव्यों से मजन सौष्टव, सुन्दर मद विन्यास व्या वती उपवाओं का अनुभव होता है। इस प्रकार यह गव्य आदिकालीन अनेक पाठों का संग्रह है। प्रारम्भ में डा. हीरालाल जैनकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्तुत: मादिकालीन जैन रमाओं ऐतिहासिक ग्रह करके नाटा मेमो ने साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की है। ( विधिक जैन काव्य संचयः पनि जिन किस मी इवारा सम्पादित या कृति १९५६ में प्रकाशि कृति में भी विद्वान सम्पादक ने क हिन्दी पतिहासिक हिन्दी जैन रमानों का संकलन क्या याद किया गया है। रमा देशी भाषा काव्यों के पागे पर विस्तार विवेचन किया गया है। रचना का भूमिका माग अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिसमें रमानों के महत्व और उनकी प्रशियों पर मारा गया है। माग काव्यों के संकलन की दष्ट प्रकार का बना विलाप है।तिक सम्पादन एवं सृजन पर्याप्त मात्वपूर्ण पर्वमा की दृष्टि से भी कृति महत्वपूर्ण है। ( Vव और शE श्री नाथूराम प्रेमी ने सति अपन म कमिन्दीरत्नाकर (प्रास्ट) शिक्टेिड बम्बई से प्रकाशित किया। समा गमात्वपूर्ण परिक लिया है। पूरी पीवी पूर्व मा किया है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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