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________________ सती भषा सामि सार्नु बीरा गयवर मान कहिनि एह का उतरो अनुलिवल जिम सवि कर्म दहिनि बिहिनि तपउ प्रतिबोध मुगीन डिई उपमन बसि जात जुगार बंधव गाइ बाइ ५ हूंब बसामिल मान बग्य तब मान उपतु अभरे कीर उETE मयी सरपि नलनी पाति मिठो बहुली नाड नाभि परदेव्या रिक्स वियर पुनंदा मुर्मगला राणी भरत बाहुनाति भी बारि, मती शिरोममि बापी ए ममता अमि पाप न लागि अनिल सुक्ष अनंत श्रीवरत्न मूरि ईम बोलिश्री आदि नाथ जयवंत (१९७) इस प्रकार कुल १० बों में लिखी यह कृतिभरत और बाकी के जीवन का एक उत्कृष्ट बरिख काबपामा प्राचीन राजस्थानी है। इस प्रकार इन प्रबन्धों में क्या का सत्वही अधिक है। क्योंकि ये असायरता मिटाने और धर्म प्रचार की दृष्टि में लिये गए। परन्तु त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध बस काव्य ऐसी स्थितियों में अपवाद ही को शा। वस्तुतः धर्म के दार्शनिक पक्ष पर लिये ग्रन्थों के अतिरिक्त और धर्म के मूल तत्वों के वर्षन के अतिरिक्त तानि विषयों पर देवी प्रमों की संख्या कम है परन्तु यह कहना संपवत: बहुत ही नहीं देने जैन मंडार भी बंद जिनमें मारी चक है। दोष होने पर लौकिक रमली किक दोनों विषयों पर जैन काय उपाध होग। इस प्रकार में प्रबन्ध काव्यों कीका में आने वाले काय हो बनेक उबारमा सवारिस, प्रनवरित, विद्याविकास पवाड़ी आदि पुराण विराट कामपंपी गई मावि पर उनका विवमन विभिन्न काम मों केस किया वाया। पररवर बाहुबली रास. नेमिनाथ का गौर सारा राज सकायों के स उपसोडे। चिन पर पिरले पृष्ठों प्रकार डाला वा बुम होने पर और अधिक प्रकरना अवश्य प्राप्त होगी। -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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