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________________ ५७२ नाचई पात्र तिमान बार अविकत गुण गाई उदार बुछ दर्शन बसु सेवई बार वेनी ओक न लाभ पार (पद १७६) और इसके बाद विवेक के राज्य का समूल विनाश करने के लिए काम अपने परिवार के साथ चढ़ आया। दल बल सबल होकर काम ने सर्वत्र त्रिलोकी में विजय प्राप्त कर ली। ब्रह्मलोक में सावित्री की भीनता स्वीकार कर ली, गोपिका ने विष्णु को पराजित कर लिया, कैलाशपति को पार्वती के साथ बंधना पड़ा और गौतम भादि रिकियों को काम प्रभाव से उनकी स्त्रियों के बस में होना पड़ा। यहीं नहीं उसने चर अचर सबको काम पीड़ित कर दिया। कवि ने बड़े ही उल्लास में डूबकर इस वसंत रितु का चिन हमारे सामने खींचा है। कुछ आलंकारिक उदाहरण दृष्टव्य है: ईम कहता पहा रितु वसंत उल मनमा धमत सई हत्यि वधाइ जण मिसेस, आधी विवि बहिनर असेस पापात कलरव करई मट बरिज जय सिरि अरिध (इट) पय अगुडिय गार वरंग परकरिय पंच ईदिन तुरंग कृषि कल्प-महारथ बेमि बंग, सात व्यसन-पाया अभंग विस्था पियान रि-निनाद, दल मिलिय विद जब मरवारिक विषमभुत आसण पर इत्वि उन्माव-पितु किसन इत्वि मिल्लिक सर मल्ल पि विविभा, विपि करयलि कि शिम अमुमनात पतिरिव पुरुष शिपि विक्टवीरि, गाडिब नारि कोमल वरीरि ती सपाच मिरि, बिरामि, पट्टउसी पहर स्वर मामि मगध मन बावी, बधिर जिम कील करि घरति निय पती मिमि सीम, क -बापावली मन पावविवार किल्ब, रमिपि टोडर पायबद्ध शक्ति प सिंकबलुबारी अमरसि कति का नागिणी कर यि, यारं विलम मरी-त्वि नारी रवि नर पास, बल्ली परिवडिय रहिय मस
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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