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________________ ५३९ प्रमुख रूपक कृतियां है। प्रावृत में रूपक काव्यों का प्रायः अभाव है सिर्फ प्राकृत गाथा में कवि जयराम ने धर्म परिक्ता की रचना की। अपभ्रंश में सं० १०४४ में हरिण की धम्मपरिक्ता, सोम प्रभाचार्य कुरा सं० १२४१ का जीवनकरण संलापकथा, कुमार पाठ का प्रति बोध नामक प्राकृत प्रन्थ का अंश है जो धार्मिक कथावदुध रूपक काव्य है हरिदेव कृत मदन पराजय रूपक काव्य है। इसके अतिरिक्त नृत्यास्थान, तथा ज्ञान सर्वो नाटक भी प्रमुख रूपक काव्य है । हिन्दी साहित्य में रूपक काव्यों की परंपरा जैन कवि पैया भगवती दास (वीं शतादी) के चैतन चरित्र से ही प्रारम्भ होना श्री परमानंद शास्त्री जी ने लिखा है। परन्तु उससे बहुत पूर्व १५वीं शताब्दी में जो जयशेखर सूरी का प्रस्तुत काव्य उपलब्ध हुआ है वह पुरानी हिन्दी का है। अतः शास्त्री जी के कथन का परिहार इससे हो जाता है और इस इष्टि से हिन्दी रूपक काव्यों की परंपरा ३०० वर्ष और पुरानी सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार यदि आधुनिक हिन्दी रूपक काव्यों के से यदि एक वीरा बींची गय तो उसमें आदि काल का त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध, पैयूया भगवतीदास का चैतन चरित, तुलसी का राम चरित मानस और प्रसाद की कामायनी वादि रचनाएं एक ही डी में बाधी जासकती है। वस्तुत: आदिकाल में रूपक काव्यों की परंपरा का प्रारम्भ करने का श्रेय त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध को ही है। यह प्राचीन राजस्थानी की भाषा की सुन्दर रचना है। १५वीं शताब्दी के चरित काव्यों मैं भी इसी प्रकार ब्राजिनवास का लिल एक काव्य परमहंस बरित मिलता है और इसी प्रकार यह परंपरा व रवीं शताब्दी में मोहविवेक रास, ज्ञान कलश चपई आदि ग्रन्थों के रूपमें रवि मिलती है। निर्गतः ११वीं शताब्दी से पूर्व की कोई यक कृति उपलब्ध नहीं है। ग्रेजी में भी इस प्रकार की रूपक तत्व प्रधान रचनाओं का उल्लेख मिल जाता है। यह परंपरा विदेश में भी थी। यूरोप के मध्यकालीन ब्रिस्ट भक्तों ने भी रूपक काव्य की रचना की थी कवि वैनियन का पिलीम्स
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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