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________________ काव्य है अतः यह काव्य सं० १४१५ के बाद में ही लिखा गया होगा। इस काव्य के शिल्प पर प्रबोध चिन्तामणि की छाया भी स्पष्ट परिलक्षित होती है। कवि ने इसे उसी आधार पर ही लिखा है। अत: कवि का रचना काल १५वीं शताब्दी के उत्तराईघ का प्रथम चरण ही रहा होगा। जयशेखर के सम्बन्ध में जाति, स्थान आदि गत सूचनाएं कुछ मिलती नहीं। वो यह अनुमानतः कहा जासकता है कि कवि का जन्म गुजरात में ही हुआ होगा। जयशेखर की शिष्य परंपरा भी बड़ी सम्पन्न थी जिसमें धर्मशवर सूरि की जैनकुमार संभव काव्य की भाषा टीका और माणिक्य अन्दर मूरि की उत्कृष्ट गमकृति-पृथ्वीचन्द चरित अत्यन्त प्रसिद्ध हैलो हिन्दी म साहित्य में गद्य काव्य के पद्धव की सूचक है। कृति का नाम त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध या परपईस प्रबन्ध भी मिलता है। श्री मोहनलाल देसाई ने भी इसका नाम परमहंस प्रबन्ध दिया है। कवि ने त्रिभुवन दीपक के साथ प्रबन्ध बन्द क्यों लिखा है इसका कारण बहुत स्पष्ट हो नहीं बताया जा सकता परन्तु यह अनुमान किया जा सकता है कि सम्भवतः प्रबंध शैली में लिसा गाने, या विस्तार में लिखने अथवा प्रबन्ध कम में मक काव्य का सफल निवड करने के लिए ही रखा हो। वैसा कि पहले कहा जा चुका है। गों प्रबन्ध नाम से कोई काव्य प अथवा इस सम्बन्ध में कोई विशेषता स्वतंत्र में नहीं मिलती। स्वयं कब ने पी अन्त में से प्र हा है। प्रारंभ कवि जब सब बोताओं या पाठकों को सावधान करता है वह अन्धका भाष सविवार लिखा पल इस नाम से अधिक संगत माम मिभुवन दीपक प्रबन्ध या परमहंस प्रबन्ध ही लगता है क्योंकि एक को कृषि या काव्य है। दूसरे इसी त्रिभुवन एक राज्य वर्णित मा इसके अतिरिक्त कवि ने प mama १-भाषण कवियो। श्रीकामावी-2011 जैनबरायो-प्रथमपाम.१४-श्री मोहनलाल देखाई। ४. मिसनबीपकपट प्रबन्ध पाप पर समुहहन मंच-सिवन-दीपक-प्रबंध. T४८ श्री माची। 4- सावधान बरस बरडि विवा-बहीबड़ी
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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