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________________ प्रजन्ध संज्ञक काव्य रास और फागु काम्यों की परम्परा और कृतियों पर विचार करने के पश्चात हम हिन्दी जैन साहित्य के प्रबन्धों पर विचार करेंगे। यो प्रत्येक रचना अपने में एक प्रबन्ध होती है परन्तु जैन काव्यों में प्रबन्ध एक बैली के उप में भी व्यवहत होने लगा था और फलतः प्रबन्ध नाम से काव्य लिखे जाने लगे। यद्यपि प्रबन्ध नाम से अधिक काव्य नहीं लिखे गए। अद्यावधि इस प्रकार की प्रवृत्तियों व नामों के दो ही प्रध रचनाएं प्राप्त हुई है। प्रबन्ध काव्यों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है।संस्कृत अपप्रेश आदि भाषाओं में बहुत पहले से प्रबन्ध मिलने लगते है।हबईधन के बाद चौहान, चंदेल, प्रतिहार, परमार, सोलंकी आदि राजपूतों के परस्पर संषों से वीर रसालक वातावरण की सृष्टि हुई और वीर गाथात्मक काय लिखे जाने लगे।इस काल में इस प्रकार के वीर गाथात्मक काव्य दो प्रकार के मिलते है: (२) प्रबन्ध सन इन प्रब का विषय अध और मेन था। अंग्रेजी के प्रसिद्ध विद्धवान काल में अपने में 'धनमा पर्याप्त वर्णन किया है। बीर रखपुस्तकों के उदाहरण डेमबन्ने विष है। इसी प्रकार के कुछ प्रम में वीरता व प्रेम,ौर्य या रोमांस में डूबे हुए मिलो - बाबा के गीत, बीसलदेवराम, पृथ्वीराज राय मादि एसी ही रचना है। गुजराती का काम दे प्रबन्ध 'या आकिल का समराराब" Men imamsa -Hore and Agri-worship : hty Burlyle Page 152 - देखिए पमनाथ रविकान्हदे प्रबंध। ४. आपणा कवियो।बी०का आस्त्री पु०२१-२२॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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