SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ad उस सोरठ देश को धन्य है जिसमें गिरनार है। जिसके शिखर पर प्रभु ने मि आसीन है शिखर को देखकर मनुष्यों के मन में उन्माद छा गया। वह शिखर कैसा होगा। जहाँ अतुल वाले इन्द्रियजीत जिन विश्वास करते है उस पर्वत को कम है। गह मनुष्यों का गिरनार समूह के शिखर पर चढ़कर अद्भुत गार करके परिजन पुत्र कला सहित यादव कुल के आभूषण तिलारूप नेमिनाथ को प्रणाम करेंगे जो दुखों का विनाश करने वाले है और क्लेश पी मल को हरण करने वाले है: धन्नु सोरठ देस प्रिय धनु गिरिहि गिरनार जासु सिहरि पढ़ ने मि जिणु सामिड मोडग-8TV महु मखुण्ड महिमा विसउ सुगड़ गिरनार जहि निवसह जिणु अतुल बल सो डुंगरु जगि साड रैक्य गिरिवर सिहर चढि अवजुद कह सिणगार परियणि-पुस्ति कत्तम पाभि ने मिकुमार गादव कुल मंडप तिलक, पमिस नेमि जिकिंदु जिण मण वारि सपंडइ, तोडइभव-इह देख - (१०) सम्पूर्ण संघ जिनेन्द्र की प्रार्थना करता है कि संसार का कल्याण डोनुत्य गान होवा है विधिवत पूना गान और श्रद्धा से स्तवन पाठ होता है कवि ने बीवन को मुखमय करने कातिप्राप्त करने और पापों को दूर करने के लिए ही इस बावरि की रचना की है। कवि ने इस रमा को दोहा में भी किया । अन्य कवि सभी को चावरि पढ़ने के लिए निर्देश करता है जो सार मुक्ति दिलाने वाली है: साक्य माविस भवति इह पारि सुह भावि सवि पूरितवारंड टिी कलिमा पावि मावि नबरि परि जिन मणि जे वाचरि पति नयणि 'जिसर मूरि शुक्र है सिव मुहू पार्वति (२९-३०) इस प्रकार ययापि काय की दृष्टि से इस रचना का अधिक महत्व है परन्तु रचना प्रकार मेय नृत्य गान सूचक गीत विशेष के आप में बरी के शिल्प को समझने में पात्र पहायता मिलती है।वरी का यह प्रति के चित्र को देखने पर और स्पष्ट हो सकता है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy