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________________ (संवृत्ति-बब्बरे-हद्द मार्ग गीत नृत्या ताल ध्वनि कृत्वा अपूर्वी वसन्त कालोनृत्यते । धन सिबिड हाराभिः परिखेलन्ती मिः मेशला किंकिणी मिः गण स (चरी गाकर ताल सहति नृत्य करके अपूर्व वसन्त काल नृत्य करता आता है धम निविड़ हारवाली तती स्त्रियों से उनके मेखला की किंकिणी बड़ी स्याम शब्द करती थी। (१०) ढोला मार रा दोहा - पी बरी का प्रसंग मिल जाता है. फागुण मा सि वसंत त आया जइन सपोर चाचरिउड मिस खेलती होली पंपावरु (१४५) (वसंत रितु के फागुन मास में यदि तुम्हारी आना पुन सुनाई दे तो बरी के बहाने में होली में खेलंगा) इसमें सम्पादक चर्चरी सम्बन्धी टिप्पणी लिखते है कि फागुण में होलिकोत्सव के उपलक्ष्य में होने वाले गीत नृत्य आदि से चाचारि बर्चरी होली में गाये जाने वाले एक राग विशेष को कहते है। (1) हिन्दी साहित्य में कबीर दास की रचनाओं में बीजक में बाबर नामक एक अध्याय है। इस बाबर चरी प्राचीन शिल्प के अंकुर विद्यमान है। इसका एक उदाहरण इस प्रकार दिया जा सकता : चलती माया मोसी जिन को दियो संसार रच्यो रंगहे चूनरी कोदरि परिवार नारद को मुखमा डिके कीन्हो वम हिनाय मरव नती गरम है उसटि, बही पुसकाय एक ओर पुर नर मुनि बार एक अकेली बाब दिष्टि परेन काहुन छोडे केलीन्हों एक धाय (1) जायसी और कुलसी में भी बरी रामगुण प्राम का उल्लेख किया है .- मिति नहिं किन बावरि होइ नाव कूद मूहा सब कोई . (जायधी)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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