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________________ ५३७ तवणीय-वह- सिय-चीर्णस्य च सहस्य रमणीया रमणीय रमणी - सहरिस-पारंमिय चञ्चरी - गीया । २३-५५१ तपा कर शुद्ध किए हुए सोने के दंड ऊपर ऊंचे किए हुए चिनाई कपड़े के सहस्त्रों सहस्य रमणीय चय और सहर्ष चर्चरी गीतों को प्रारम्भ करने वाली रमणीय रमणियों वाली (वाराणसी नगरी) (३) ० १२११ मा स्वर्गीय जिनयत्तरि ने अपने गुरु श्री जिनवल्लपतुरि के लिए गुरु स्तुति के रूप मेंअप और तत्कालीन देशी भाषा में की है। उस पर संस्कृत में सं० १२९४ में निपाल उपाध्याय ने उस पर एक भाष्य लिखा है। उन्होंने १ उस स्तुति का नाम चर्चरी रक्ता है। यह प्रथम मंजरी भावा में तथा नृत्य के सहित गाई जाती है उन्हीं जिनयाल उपाध्याय ने जिनदत्सरि के अपारं काव्य नाम से उपदेश धर्म रसायन रास नामक संस्कृत टीका रची है उसके प्रारम्भ में बताया गया हैचरी - रासक-प्रख्ये प्रबन्धे प्राकृते किलः वृत्ति प्रवृत्ति माधत्ते प्राय: कावृषि विचक्षणः || (४) प्राकृत पिंगल में चर्चरी नामक एक हल्द विशेष है। प्राकृत पिंगल सूत्र मैं तथा हेमचन्द्र अपने ग्रन्थ दोनुशासन में २३१ में पद्म में चर्वरी का लक्षण इस प्रकार स्पष्ट करते है- मादि में रम (गाला ) फिर सगण (लगा) फिर एक लघु फिर ताल आदि र निक्क मध्यमें हो। फिर एक मूरु। फिर एक और एक गुरु दो लपक गुरु, एक लघु और एक गुरु- उ पद को देखिए आइ रग्गम रत्थ कारल ताल दिन्न मत्ववा सहार पत विपूणवि सम्यलोज विशा ये विहार रहन मोहना १- पटमंजरी नामक राम नारद कृर्व संगीत मकरंद में बताई गई है। विकी ७वीं शताब्दी हुए अनेक पटमंजरी काव्य क्या लडपाद आदि विरचित चमचर्य आदि का महामहो० हर प्रमान शास्त्री दुवारा सम्पादिता बंगीय परिषद द्वारा प्रकाशित बौद्ध मान और वोडा ग्रन्थ में मिल जाते है।पटमंजरी पावा में सं० १३५८ में रखा हुआ एक अपोश का काव्य है उससे स्पष्ट होता है कि पढ मंजरी मावा में प्रमीय राग की प्रविष्ठा रही प्रतीत होती है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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