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________________ 2 ३०एम० मुशी का मत है कि: "एक नमाना गजब औरस्नी अपशगत में भी प्रशलित 2ी डा० मुनी तिमार वटी हेमचन्द्र दोनों को पश्नमी अपभ्रंश की रचनाएँमानते हैं उनका मन है " "गुजरात के जैन भावार्य हेमन्द्र(०.००८-०७२; इनारा प्रति व्याकर' में रदाहृत पश्चिमी अपभ्रंश के प्रचलित साहित्य के कुछ उदाहरणों से हमें इस बात का पता चलता है कि उस लाली भाषा हिन्दी के स्तिने निकट की अपने प्रन्हा राजस्थानी भाषा में वे शौरसेनी अपभ्रंश को उस काल की नन प्रचलित भाषा जतलाते है। (५) हेचमन्द्र की भाषा को एक वर्ग के विद्वान शौरसेनी कहते हैं और दूसरी और तुराती विद्वान इरे गौरीर अपभ्रश्न मानते हैं।इसमत के प्रणेता भी २०१० धडौं, जिन्होंने इस विकल्प लो जन्म देकर पुष्ट यिा है। आन्त्रीही ने भी अपने इ. आपणा वियोनन्ध मेंहेश्चन्द्र के नाम के अपभ्रंश को जुन गोर अपभ्रंश शिद्य करने का प्रयल प्रयास किया है। आप-T कवियों के उपोद्घात् के प्रारम्भ में उनका यह संपल्प कितनी बड़ी चुनौती लिए है कि वे इस पुस्तक में हेम बन्द्र के अपभ्रंश को गौर अपभ्रंश लिदा करके रहेगें। .- गुसरात एन्ड इट्स लिटरेचर- के०एम० मुन्शी, पृ० २०-२० । २-भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी डा० सुनीतिकुमार चटजी-पृ०१७८-७९ ३- रानभानी भाषा- डा. बटरी पृ० ६३ ४- आपणा कवियो खंड १ नर सिंह युग नी पहेला,पोद्घातपृ० ३७-४० द्वारा श्री के०का० शास्त्र:प्रकाशक गु०व०स०अहमदाबाद,०९४२॥ ५ (अ) आम आपणी सामे अनेक भाषा वेदो मा एक आपणा देश नौ भाषा भेद आवी रहे है जै गौर अपभ्रंश है ये बात चालग्रन्थ में बताववानो मारी प्रयत्न है। (ब) आचार्य हेमचन्द्रनौ अपभ्रंश एमा साहित्यिकीय (स्टैन्डर्ड) अपवंश कती जे काई । विशेष तो आदेशनु है। (स) एटले आचार्य हेमचन्द्र ना अपभ्रंश नै तैनै प्रान्तीय लाक्षणिकता ए गोर्जर अपभ्रंश कहैवा मा बात जनातो नथी ।ब्रज भाषा नो सम्बन्ध आपण ने बधू निकट होवामा आभीर अनै गर्नर प्रजा नो फैलावो कारण भूत एम मनै लाग है, जैनो सम्बन्ध टक्क पंजाब साथै जनो ब्रज भाषा शूरसैन माशर प्रदेश ने भाषा हाई जैने शारसेन अपभ्रंश कोई हतो तैमाथी ऊतरी आवेली स्वीकारवामां आवी है। वस्तु स्थिति ए मध्यदेश शरसेन जैम एक काले संस्कृत भाषाना साम्राज्य मा हतो.तेम पदी पालीना साम्राज्य मा आवयो, जे पदी थी शौरसेनी महाराष्दी द्वारा अपभ्रंश ना साम्राज्य मा आंव्यो,आ अपभ्रंश नं नाम पावं होय तो शौसेन तेमज महाराष्ट्र एम बने आपी सकायानागर अपभ्रश एने कहैवो होय तो केवी रीते कहैवो ए कहैतु मुश्कल छ।मार्कन्डे सिवाय आपणी . पासे बीजो कोई पुरावा स्पेन भी।बेशक सौरसेनी ना बंधा संस्कारौ मार्कन्डे ना नागर अपभ्रंश मा तो महाराष्ट्रीना बधा संस्कारौ दिगम्बरोना महापुराण वगैरे काव्योनी भाषामी छे---- ब्रजभाषा जेमा श्री उतरी आवीएने कोईपण नाम आपवं होय तो मने ऐमा लागे के------------
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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