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________________ रचना ज्ञान पैवमी चउपइ मिलती है। रचना कार जिनोदयमूरि के शिष्य थे । कवि ने अपने पिता आदि का परिचय रचना के प्रारंभ में दिया है। इस कृति का ू ५२१ 100 रचनाकाल सं० १४२३ है । ५ ने इस रचना की सूचना दी है। साहित्य परिषद् की रिपोर्ट में स्वर्गीय श्री दलाल परन्तु रचना प्रकाशित नहीं होने तथा भंडारों मैं इसकी प्रति अद्यावधि उपलब्ध नहीं होने से इसके सम्बन्ध में अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। उपलब्ध एक दो पदों के आधार पर ही इसका परीक्षण किया जा सकता है। ज्ञान पंचमी जैन श्रमण संस्कृतिक की लेखन कला का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस दिन लिहावट के उपादानों की पूजा होती है। कवि ने उसी पर्व को दृष्टि में रखकर इस पर पूरा धार्मिक काव्य लिखा है। यह रचना बहुत बड़ी है तथा ५४८ कड़ियों में समाप्त हुई है। यदि किसी भी जैन मंहार में इसकी प्रति उपलब्ध हुई तो इसके अर्थ गौरव और पदलालित्य का मूल्यांकन किया जा सकेगा तथा आदिकालीन कृतियों में इसका स्थान पर्याप्त महत्व पूर्ण होगा । रचना के प्रारम्भ में ही कवि अपना वंश पारंपरिक परिचय देता है: १- बढी । ठक्कर वाल्हे तु विष्णु पमणह सुधमणी हरसिंह लागत भी करा देवी सम fee मानय इत्यास गुरु वावरि इह अपनर नगर बिहार मकारि पंचमि इन गाइस्ट ३३ (५४६) मावा में नवीनता परिलक्षित होती है। तत्सम रूपों का बाहुल्य है।धन्द की दृष्टि से भी इसका पर्याप्त महत्व है।देशी बालों में प्रयुक्त सोरठा और रोला दृष्टव्य है । यो पूरी रचना में चौथाई तो सर्वत्र प्रयुक्त हुआ ही है अतः रचना छन्द प्रधान है। इस मद का एक उद्धरण देखिए: arus इस बार मंडल नगर बिहार ear कवि हरिये आपने, बहु होय पंचमी हुने
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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